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अकोटा से प्राप्त 'जीवन्त स्वामी' की कांस्य प्रतिमा बड़ौदा म्यूजियम में सुरक्षित है, वह शायद परम्पराओं में संक्रमित होती हुई महावीर के उसी तत्कालीन मूल स्वरूप 'जीवन्त स्वामी' की ही प्रतिच्छबि हो तो क्या आश्चर्य है ! कम-से-कम मेरी तो यही दृढ़ प्रतीति है। क्योंकि उस काल की ‘जीवन्त स्वामी' संज्ञा आज भी उस मूर्ति के साथ अक्षुण्ण जुड़ी हुई है। खैर, यह एक मेरा अनुसन्धान मात्र है, जो शायद आगे इतिहास-पुरातत्त्व के शोधकों की शोध का विषय भी हो सकता है। - यहाँ प्रासंगिक यह है कि, वीतिभय की महारानी-मौसी प्रभावती और उनके पति राजा उदायन की दुरंगम और अचाक्षुष भक्ति की पुकार को तीर्थंकर महावीर टाल न सके, और वे पहली बार पूर्वीय आर्यावर्त की सीमा का अतिक्रमण करके अपने विशाल संघ सहित पश्चिमोत्तर सीमान्त की ओर प्रस्थान कर गये।
- प्रभु का यह महाप्रस्थान, समकालीन भूमण्डल के समग्र ‘ग्लोब' की दिग्विजय के प्रस्थान-बिन्दु के रूप में हाथ आता है। और ठीक इसी मुकाम पर औचक ही महावीर के रचनाकार को एक विज़नरी साक्षात्कार होता है : कि तीर्थंकर का धर्मचक्र प्रवर्तन अपने समय के भूगोल के विस्तारों में भी 'ग्लोबल' यानी सार्वभौमिक हुए बिना रह नहीं सकता। समकालीन पृथ्वी के तमाम ज्ञात छोरों तक गये बिना मानो वह समापित नहीं हो सकता। यह मानो तीर्थंकर के धर्मचक्र प्रवर्तन की अनिवार्य नियति है।"
मानो कि इसी नियति के इंगित पर श्री भगवान् राजा उदायन और रानी प्रभावती की पुकार पर सीधे वीतिभय की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। और फिर घटनाक्रम कुछ इस तरह चलता है, कि वहाँ से लौटते हुए प्रभु उज्जयिनी और उसके बाद दशपुर आते हैं। महामालव के प्राचीन नगर दशपुर का यह नामकरण, घटनावश उसी समय होता है। यह शायद निरा आकस्मिक नहीं, कि 'अनुत्तर योगी' के रचनाकार वीरेन्द्र का जन्म इसी दशपुर यानी आज के मन्दसौर नगर में हुआ था। इसका सम्भवतः क्या गहन आशय रहा होगा, इसका स्पष्टीकरण पाठकों को पंचम खण्ड में सांकेतिक रूप से हो सकेगा। कल्प-दर्शन (विज़न) के वातायन पर ही लेखक को इस आशय का अनायास साक्षात्कार होता है। और इस दशपुर नगर के समवसरण, में महावीर के गृह-त्याग के बाद पहली बार सोमेश्वर और वैनतेयी श्रीभगवान के समीप उपस्थित होते हैं। ग्रीक दासी बाला वैनतेयी को सामने पाकर, उसकी आँखों के जल में प्रभु को मानो भूमध्य सागर के जल-जलान्त उछलते दिखायी पड़े। और उनमें से युनान (ग्रीस), इस्रायेल (मिस्र) और पारस्य (पशिया) की पुकार भी सुनायी पड़ी। अन्तरिक्षचारी प्रभु के लिए
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