________________
८
कार्य में तीन-चार महीने लग गये। ख़ैर, किसी तरह चतुर्थ खण्ड का मूल पाठ (टेक्स्ट) छप गया, तो अचानक मेरी अविकसित मस्तिष्क बीस वर्षीया अबोध बिटिया लवलीना जल गयी । तब एक महीना उसकी वेदना को झेलते हुए जिस मानुषोत्तर यंत्रणा में बीता, वह मानुष-गम्य नहीं, केवल ईश्वरगम्य है । लवलीना के घाव में रूझ आयी, तो आचनक वह विक्षिप्त प्राय हो गई। बच्ची के पागल हो जाने का ख़तरा माथे में धमाके मारने लगा । तिस पर अपना स्वास्थ्य चकनाचूर : थकान, श्रांति और क्लांति की गण्यता तो बहुत पहले ही समाप्त हो चुकी थी । उनसे ऊपर उठ कर केवल अपनी आत्मिक ऊर्जा के बल पर संघर्ष करते जाना था, कर्म करते जाना था । सो अब भी जारी है।
के
'अनुत्तर योगी' के हर खण्ड में पश्चात् भूमिका लिखना अनिवार्य रहा । कारण अपने रचनाकार की परिपूर्ण स्वतंत्र चेतना के चलते, अपनी 'डायनामिक' रचना - प्रज्ञा और प्रक्रिया के चलते, 'अनुत्तर योगी' में भाव-संवेदन, विचार, आचार, वाणी और साहित्य के रूप- शिल्पन तक के सारे प्रचलित ढाँचे, लोकें और रूढ़ियाँ टूटती चली गई थीं । महावीर मूलतः विश्व- पुरुष थे, लेकिन वे एक सम्प्रदाय विशेष के प्रतिमाभूत पूजित पाषाण के आसन पर भी क़ैद रक्खे गये हैं । इस जड़ीभूत कारागार की दीवारों को तोड़कर महावीर की सार्वलौकिक, सर्वकालिक मौलिक व्यक्तिमत्ता और प्रगतिमत्ता को ठीक आज मनुष्य के चेतना स्तर पर नव-नव्यमान गत्यात्मकता के साथ जीवन्त करने की रचनात्मक चुनौती भी मेरे सामने पहले ही दिन से खड़ी थी। और अब तक प्रकाशित तीनों खण्डों में भरसक उस चुनौती का उत्तर मैंने दिया है । फलतः रूढ़िग्रस्त अनेक जड़ीभूत धार्मिक-नैतिक मर्यादाएँ और अवधारणाएँ टूटी हैं, तख्ते टूटे और उलट-पुलट हुए हैं। एक उपद्रवी, विप्लवी, प्रतिवादी, क्रान्तिकारी, अतिक्रान्तिकारी, चिरन्तन युवा महावीर धरती पर जीते, चलते, बोलते सामने आये हैं। और उपन्यास का स्थापित ढाँचा भी, बेतहाशा टूटता ही गया है, जैसा कि वर्तमान भारतीय साहित्य में शायद ही अन्यत्र कहीं हुआ होगा । यह केवल मेरी मान्यता नहीं है, समझदार और जानकार समीक्षकों ने भी यही अभिप्राय व्यक्त किया है।
ज़ाहिर है कि एक ख़तरनाक़ पराक्रम करने की गुस्ताख़ी मुझ से बराबर हुई है। हर अवतार या पैग़म्बर प्रतिवादी और विप्लवी तो होता ही है । जड़ीभूत पुरातन को ध्वस्त कर के वह नव्य जीवन्त रचना करता है । ऋषभदेव, कृष्ण, युद्ध, क्राइस्ट, मोहम्मद, जरथुस्त्र आदि अवतार पुरुष -- और कबीर, ज्ञानेश्वर आदि सारे मध्यकालीन सन्त और योगी, विद्रोही,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org