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________________ के बिना वैशाली का अस्तित्व नहीं। महावीर के शब्द पर से ही विदेहों की सच्ची वैशाली पुनरुत्थान कर सकती है। आज से वैशाली के गणनाथ महावीर हैं, मैं नहीं। मैं समर्पित हूँ भगवन्, मैं प्रभु के उत्संग में उबुद्ध हूँ, त्रिलोकीनाथ !' और चेटकराज महावीर की चेतना में तदाकार होकर समाधिस्थ हो गये। अष्टकुलीन राजन्य और सामन्त निर्जीव, निराधार माटी के ढेर हो रहे। हताहत महानायक सिंहभद्र ने साहस बटोर कर पूछा : 'वैशाली का भविष्य क्या है, भन्ते त्रिलोकीनाथ ?' 'वैशाली का भविष्य है, केवल महावीर ! और सब कुहेलिका है, मरीचिका है।' 'तब तो वैशाली की अन्तिम विजय निश्चित है, भगवन् !' 'महावीर की वैशाली विजय और पराजय से ऊपर है। सो उसका पतन असम्भव है। लेकिन तुम्हारी वैशाली, तुम्हारे परकोटों में शस्त्र-बद्ध है। उस वैशाली का त्राण तुम्हारे हाथ है। उसकी विजय तुम्हारे हाथ है। उसका त्राण तुम्हारे सैन्यों और शस्त्रों पर निर्भर है। उसका उत्तरदायी महावीर नहीं।' 'वैशाली का निःशस्त्रीकरण चाहते हैं, महावीर ? इस शस्त्रों के जंगल में ? इन भेड़िये राजुल्लों के डेरे में? और अकेला सिंहभद्र तो वैशाली के भाग्य का निर्णायक नहीं, भगवन् ।' 'जगत् का त्राता' और भाग्य-विधाता सदा अकेला ही होता है। वह पहल केवल एकमेव पुरुष ही कर सकता है। सम्भवामि युगे-युगे का अवतार कृष्ण, अपने धर्मराज्य के महाप्रस्थान में कितना अकेला था! कुरुक्षेत्र की अठारह अक्षौहिणी सेनाओं के बीच भी वह कितना अकेला था । और इस आखेटकों के अरण्य में, एक दिन वह अकेला ही, एक आखेटक का तीर खा कर मर गया। उस क्षण उसने अपने प्राणाधिक भाई तक को अपने से दूर कर दिया। अपनी महावेदना में उसने एकाकी ही मर जाना पसंद किया।' भगवान् क्षणैक चुप रह गये। फिर बोले : 'और देखो आयुष्यमान्, त्रिलोकी को इस चूड़ा पर, तीनों लोक के प्यार और ऐश्वर्य के बीच भी, महावीर कितना अकेला है ! कि उसकी आवाज़ अकेली पड़ गयी है। वैशाली के भाग्यविधाताओं ने उसको प्रतिसाद न दिया।' 'अपना प्रतिसाद तो अर्हत् महावीर आप ही हो सकते हैं। हमारी क्या सामर्थ्य, कि उनके सत्य की तलवार का बार हम लौटा सकें। लेकिन यदि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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