________________
३२९
आखिर एक दिन वे रूपसियाँ जरा नर्म हो आईं। उन्होंने दूती से कहा कि : 'हमारे सदाचारी श्रेष्ठी-पिता, हमारे शील पर सदा पहरा लगाये बैठे रहते हैं। उन्हें यह असह्य है, कि कोई पुरुष हमारे कौमार्य की कटि-मेखला भंग करे। आज से सातवें दिन हमारे ये संरक्षक पिता कुछ दिनों के लिये उज्जयिनी से बाहर जा रहे हैं। अपने राजा से कहना, कि तभी वे गुप्त रीति से हमारे यहाँ आयें। तब उन्हें हमारा संग-सुख प्राप्त हो सकेगा।'
उधर श्रेष्ठी ने प्रद्योतराज से कुछ मिलती-जुलती शक्ल वाले अपने एक अनुचर को, कृत्रिम रूप से पागल बना डाला । उसे पागलपन के कुशल अभिनय का पक्का अभ्यास करा दिया। श्रेष्ठी के रूप-विन्यासकार, आलेपन, उपटन तथा रंगों की सहायता से, उस अनुचर के चेहरे-मोहरे को ठीक प्रद्योत जैसा ही रचाव दे देते। और उस पागल का नाम भी रख दिया गया प्रद्योत ।
श्रेष्ठी लोगों में चर्चा करते कि-'मेरा यह भाई वातुल हो गया है। प्रेत की तरह जहाँ-तहाँ भटकता है, और मनमाना प्रलाप करता है। बड़ी मुश्किल से इसे सम्हाले रखना पड़ रहा है। कोई उपाय नहीं सूझ रहा, कि कैसे इसे ठीक करूं।' सो श्रेष्ठी प्रति दिन उसे एक खटिया पर लिटा, रस्सियों से बंधवा कर, चार आदमियों के कन्धों पर उठवा, किसी वैद्य के घर उपचार के लिये ले जाता। उस समय सरे बाजार खाट पर बँधा जा रहा वह पागल उन्मत्त हो कर, आर्त कण्ठ से विलाप करता हुआ उच्च स्वर में कहता : 'मैं प्रद्योत हूँ मैं प्रद्योत हूँ"अरे यह श्रेष्ठी बलात् मेरा हरण कर के ले जा रहा है ! ...'
उधर सातवाँ दिन आया। सो प्रद्योतराज, वादे के अनुसार उन दो सुन्दरियों का सहवास प्राप्त करने को, गप्त वेश में श्रेष्ठी की हवेली पर आ पहुँचे । कक्ष में प्रवेश करते ही, उसके चारों दरवाजों से श्रेष्ठी के सुभट काले बुर्के पहने निकल आये। और उन्होंने पलक मारते में ही, उस सुरामत्त कामान्ध राजा को कस कर मुश्कों से बाँध लिया। फिर उसे घनघोर मदिरापान करवा कर, एक कमरे में बन्द कर दिया। अगले दिन रोज़ के मामूल के अनुसार, श्रेष्ठी उसे खाट पर बँधवा कर, दिन-दहाड़े धौली दोपहर, सरे राह वैद्य के घर ले जाने के बहाने से ले कर चल पड़ा। राह पर जाते हुए प्रद्योतराज को कुछ होश आया। अपनी बद्ध स्थिति का उन्हें कुछ बोध हुआ। वे खाट पर जकड़े आर्त कण्ठ से पुकारते जा रहे थे :
'अरे मैं प्रद्योत हूँ, अरे मैं राजा हूँ। यह दुष्ट श्रेष्ठी मेरा हरण करके ले जा रहा है। अरे सुनो, मैं राजा हूँ, मैं प्रद्योत हूँ ! "मुझे इस फ़रेबी श्रेष्ठी से छुड़ाओ"छुड़ाओ ! ओ मेरे प्रजाजनो, मैं तुम्हारा राजा हूँ, मैं प्रद्योत हूँ !'
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org