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केवल बहते जाना है
उज्जयिनी में इन दिनों एक विचित्र घटना हुई है। चारों ओर नगर में उसकी चर्चा है । सुदूर 'प्रवाल द्वीप' का कोई श्रेष्ठी, नगर के राजमार्ग की एक ऊँची हवेली में आ कर बस गया है। उसके दुमंजिले के अलिन्द पर हर सन्ध्या, दो सुन्दरी कन्याएँ नित नये सिंगार कर के बैठी दिखायी पड़ती हैं। नवदुर्गा जैसा देवी सौन्दर्य । अभिजात गौरव भंगिमा। लेकिन उनके मदभीने लोचनों में अप्सरा का सूक्ष्म कटाक्ष खेलता रहता है। नगर के सारे रसिक हर साँझ उस ओर से गुजरे बिना रह नहीं पाते। और हृदय में एक कसक का बिच्छू दंश ले कर घर लौटते हैं। हाय, इस काटे का इलाज नहीं ! ... ___ रसिक-राजेश्वर अवन्तीनाथ ने यह सम्वाद सुना, तो उस रात सो न सके। अगली सन्ध्या ही महाराज अपने रथ पर आरूढ़ हो कर, उस हवेली से गुजरे। उनकी दो आँखें, तिमंजिले की चार आँखों से मिलीं, तो हट न सकी। रथ को भी क्षण भर रुक जाना पड़ा। पहिये ही मानो मुर्छा खा गये ! ."महाराज पर जैसे किसी ने मोहिनी सिन्दूर छिड़क दिया। उनकी आँखों में जाने कैसी काजली-नीली रात अज गई। उन चार लोचनों की कजरारी कोरों से उनका हृदय पोर-पोर बिंधा जा रहा था। दरबार और अन्तःपुरों से राजा गैरहाजिर हो गये। उनके निज कक्ष के कपाट जो बन्द हुए, तो खुलने का नाम नहीं।
""आखिर एक साँझ महाराज की एक गुप्त दूती, श्रेष्ठी के आवास पर पहुंच गई । उसने संकेत भाषा में महाराज का संदेश, उन दोनों सुन्दरियों को सम्प्रेषित किया। उन अल्हड़ कुटिल लड़कियों ने दूती का खूब मजाक उड़ाया, और उसे निकाल बाहर किया । दूती हर साँझ नये-नये सन्देश और महाघ भेंट-उपहार ले कर आने लगी। और हर दिन उसे तिरस्कृत, अपमानित हो कर लौटना पड़ता । वह सोच में पड़ी, हमारे महराज तो जगतजीत कोटिभट योद्धा हैं। उनके प्रताप से दिगन्त काँपते हैं। और वे इन कौड़ी-मोल बिकने वाली गणिकाओं का अपमान भला क्यों सहते चले जा रहे हैं ? ओह, ऐसी अजेय होती है नारी के कटाक्ष की मोहिनी ! "दूती ने हार नहीं मानी। वह कई बार सात परकोट भेद कर, परकीया राजरानियों तक को महाराज के पास ले आयी, तो ये तुच्छ रूपजीवाएँ क्या चीज़ हैं !.
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