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उस दिन प्रातःकाल नियत समय पर अभयकुमार 'सहस्रकूट चैत्यालय' में आये। और बड़े अहोभाव तथा मान-सम्भ्रम के साथ उन कपट-श्राविकाओं को आमंत्रण दे, अपने प्रासाद में लिवा लाये। उन्हें अपने गह-चैत्य की वन्दना करवायी। फिर उन्हें बड़ी आवभगत से भोजन कराया। उपरान्त पुष्कल द्रव्य-वसन तथा धार्मिक उपकरणों की भेंट दे कर उन्हें बिदा किया।
अन्यदा उन जोग-मायाओं ने अभयकुमार को अपने आवास पर आमंत्रित किया। नाना प्रकार के भोजन-व्यंजनों द्वारा उन्होंने अभय राजा का आतिथ्य सत्कार किया। उपरान्त 'चन्द्रहास सुरा' से मिश्रित सुगन्धित जल का उन्हें पान कराया। फिर उन्हें शयन खण्ड में ले गईं, और एक पुष्पसज्जित उज्ज्वल शैया पर उन्हें बैठा कर, वे तीनों उन पर विजन डुलाने लगीं। "थोड़ी ही देर में अभय को लगा, कि जैसे कोई अति मधुर और मार्दवी योग-निद्रा उन्हें छाये ले रही है। देखते-देखते वे गहरी नींद में मूच्छित हो गये।
तब उन कपट-श्राविकाओं ने रेशम से गुंथी रंग-बिरंगी मोटी रज्जु के जाल द्वारा, अभयकुमार के अचेत शरीर को चारों ओर से इस तरह जकड़ कर बाँध दिया, जैसे कोई मधु-चक्र रच दिया हो। और तब स्थान-स्थान पर संकेत करके रक्खे हुए रथों द्वारा, उन्होंने अभय राजा को उज्जयिनी पहुंचा दिया।
एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गये, अभय राजकुमार महालय नहीं लौटे। श्रेणिकराज चिन्ता में पड़ गये। अनेक चर और सवार उनकी खोज में चारों ओर दौड़ाये गये। खोजते-खोजते वे संयोगात् उन कपट-श्राविकाओं के यहाँ भी जा कर पूछ-ताछ करने लगे। वे मानो बड़ी ही चिन्ताकुल मुद्रा बना कर बोलीं : 'हाँ, अभय राजा हमारे यहाँ आये तो थे, लेकिन वे तो फिर तत्काल ही लौट गये थे।' हताश हो कर वे अनुचर अन्यत्र उनकी खोज में भटकने लगे। पंचशैल के कान्तारों और गुफाओं को छानने लगे। लेकिन सब निष्फल ।
"उधर वे उज्ज्वल वेशिनी वारांगना श्राविकाएँ, स्थान-स्थान पर नियोजित अश्वों तथा रथों द्वारा यथा समय उज्जयिनी पहुँच गयीं। ... चन्द्रहास सुरा' का नशा शुक्ल पक्ष की चन्द्र-कला की तरह उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ, पूर्णिमा के चन्द्र-मण्डल की भाँति अभय की चेतना को समुद्र-ज्वार-सा आलोड़ित करने लगा। उसी अवस्था में रज्जु-बद्ध अभयकुमार को एक पालकी में लिटा कर, गणिका भुवनेश्वरी ने चण्डप्रद्योत के सामने हाजिर कर दिया। __राजा के हर्ष का पार न रहा। पूछा : 'किस उपाय से ऐसा चमत्कार कर सकी, भुवनेश्वरी ? पवमान् की तरह निर्बन्धन अभयकुमार को जगत् की कोई सत्ता नहीं बाँध सकती। उसे तुम बाँध लायीं ? कैसे, कैसे ? भला बताओ तो, कैसे यह असम्भव सम्भव हआ ?'
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