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कर उसे पाटक-चक्र से अच्छी तरह कुटवा-पिटवा कर, एक दम समतल स्वाभाविक धरती बनवा दो।'
मशालों के उजाले में सारी रात काम चलता रहा। और सवेरा होते ही, एक सपाट निर्जन मैदान शत्रुवाहिनी का मानो स्वागत करता दिखायी पड़ा ।
अनन्तर, एक दिन अचानक मगध के सीमान्त पर रणसिंगे बजने लगे। और युद्ध के दमामों का घोष आकाश के कानों को बहरा करने लगा। ख़बर आयी, कि चण्डप्रद्योत के सैन्यों ने राजगृही को यों चारों ओर से घेर लिया है, जैसे समुद्र ने किनारे तोड़ कर भूगोल को आक्रान्त कर लिया हो।
"अभय राजा द्वारा पूर्व-नियोजित मैदान का निमंत्रण अचूक सिद्ध हुआ! प्रद्योत और उसके माण्डलिकों के सैन्यों ने वहीं छावनी डाल दी । इस बीच आक्रमण की तैयारी और व्यूह-रचना में दो-तीन दिन निकल गये। ___ तभी एक सवेरे अचानक कोई गोपन लेख-वाहक, नंगी तलवारों के बीच प्रद्योतराज के सम्मुख प्रस्तुत किया गया। प्रद्योत ने अविलम्ब उसका लम्बा आलेख-पट खोल कर पढ़ा। लिखा था :
'अजितबली राजाधिराज चण्डप्रद्योत को प्रणाम करता हूँ। मेरी महादेवीमाँ चेलना, आपकी महारानी शिवादेवी की छोटी बहन हैं। उस नाते आप मेरे आदरणीय मौसा हैं। फिर आप अपने एक पूर्व विवाह के नाते मगधनाथ के जामाता भी हैं, तो मेरे बहुत प्यारे और प्रणम्य जीजा भी हैं। सो आप तो हमारे अभिन्न आत्मीय हैं। आपका हित, हमारा हित है । इसीसे सखेद सूचित करना पड़ रहा है, कि आप एक भीषण षड्यंत्र के चक्रव्यूह में ग्रस्त हैं। अत: आप को चेतावनी देना हमारा प्रथम कर्तव्य है। आप तो जानते हैं, मैं सदा का तटस्थ स्वभावी हूँ। इसीसे सम्राट-पिता का और आपका हित एक साथ देखने को विवश हूँ। ____ 'जाने महाराज, आपके चौदहों माण्डलिक राजाओं को श्रेणिकराज ने फोड़ लिया है। उन्हें अपने अधीन करने के लिए, सम्राट ने गुप्त रूप से उनके पास बेशुमार सुवर्ण मुद्राएँ भेजी हैं। इसी से वे मौक़ा देख कर, आप को बाँध कर मगधनाथ के हवाले कर देंगे। प्रमाण यह है, कि उन्होंने वे सारे हिरण्य अपने-अपने डेरों की भूमि में गड़वा दिये हैं। दो-चार डेरों में कुदाली मारते ही, सुवर्ण द्रव्य से भरे लोह-सम्पुट हाथ आ जायेंगे। क्यों कि दीपक के होते हुए, भला अग्नि को कौन देखेगा ? हाथ कंगन को आरसी क्या ?...
.. चिरकाल आपका हितैषी,
___ अभय राजकुमार' - अवन्तीनाथ की त्योरियाँ चढ़ गयीं। अपने क्रोध के ज्वालागिरि को उन्होंने दबा लिया। युद्ध के किसी गूढ़ प्रयोजन का संकेत दे कर, दो-चार माण्डलिक
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