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'तो क्या अकेले जाओगे, बेटे ? अकेले जीत आओगे उस चण्डकाल प्रद्योत को? जानूं तो कैसे?'
'धर्म-चक्र के योद्धा का रहस्य, अभी जगत ने नहीं जाना, देव। समय आने पर आप जानेंगे। आप प्रतीक्षा करें, बापू, यथा समय विजय-सम्वाद आप तक पहुँचेगा। मैं आज्ञा लेता हूँ, तात।'
कह कर, सम्राट-पिता को माथा नवाँ कर, क्षण मात्र में अभय राजकुमार वहाँ से छुमन्तर हो गया।
महाबलाधिकृत सेनापति अभयकुमार ने राजगही के स्कन्धावार को आदेश दिया, कि वे सावधान रह कर, हर क्षण आदेश की प्रतीक्षा करें।
ठीक दिया-बत्ती की बेला है।...
एक उत्तुंग काम्बोजी अश्व पर सवार हो कर, अभय राजकुमार यों धीर गति से जा रहे हैं, जैसे खेलने को निकले हों। मानो तफ़री करने जा रहे हों। पीछे कुछ हजार, सैन्य नहीं, राज-मजदूर फावड़ा-कुदाली कन्धों पर उठाये चल रहे हैं। कई सौ सुन्दरी प्रतिहारियाँ सर पर सुवर्ण-मुद्राओं से भरे टोकने उठाकर, हँसती-बलखाती, ठिठोली करती चल रही हैं। और चारों ओर मशालें उठाये, मशालचियों का घेरा, कृष्ण पक्ष की रात में भी जंगल की राह को हज़ारों ज्वालाओं से उजालता चल रहा है। मानो कि तमसारण्य के भेदन को, कोई अपार्थिव रोशनी का जुलूस चल रहा है।
इस बीच चार-पांच दिनों में अभयकुमार ने, शत्रु-सैन्य के शिविर डालने योग्य, एक सीमा-प्रांगण के मैदान को साफ-स्वच्छ करवा दिया था। घासफूस, झाड़ी-झंखाड़ कटवा कर, सफ़ेद पुते सीमा स्तम्भ गड़वा कर, आक्रमणकारी मेहमान के स्वागत में मानो चौपड़-सी बिछा दी थी। नदी तट की गेल पर सफ़ेद बालू बिछवा दी थी। घोड़ों के चरने योग्य गोचर-भूमि भी पास ही लगी हुई थी। ___ गन्तव्य पर पहुँच कर महाराज अभयकुमार ने, अपने कुदालची-मशालची सैन्य को विराम का आदेश दिया : _ 'कुछ देर विश्राम करो, साथियो, और फिर जैसा बताया है, इस सारे मैदान की बालिश्त भर जमीन खोद कर, किनारों पर मिट्टी का ढेर लगाते जाओ। और प्रतिहारियो, तुम खुदी हुई जमीन में, ख ब फैला कर सुवर्ण मुद्राएँ डालती जाओ, और उतने भूखण्ड को मिट्टी से पाटती जाओ। सारे मैदान में अपने टोकनों में भरी सुवर्ण मुद्राएँ बिछा दो, और उसे माटी की मोटी तहों से ढाँक दो। और राजपति, उसके बाद सारी जगह में गिट्टी डाल
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