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दिन त यह कर देगा, उस दिन जगत् के जीवन में व्यक्ति और वस्तु मात्र की सत्ता स्वतन्त्र हो जायेगी। स्व-भाव धर्म का शासन उतरेगा। तू उसका शास्ता हो, और तब तू आपोआप ही तर जायेगा!'
'तलवार के बल, प्रभु ?'
'अपने आप के बल, अपने दर्शन, ज्ञान और वीर्य के बल। तब ज्ञान तलवार होकर काटेगा, और तलवार ज्ञान होकर तारेगी। अपने बलात्कारी बाहबल को, तारक क्षात्र बल में परिणत कर दे। और तारक क्षत्रिय होकर तलवार धारण नहीं करेगा रे?'
'प्रभु का आदेश है, तो अवश्य करूँगा।'
'तो तेरी तलवार मारकर भी तार देगी। तुझ में अर्हन्तों और सिद्धों का अनन्त वीर्य संचरित होगा। तेरी जय हो, रोहिणेय !' . रोहिणेय को दिखायी पड़ा कि, गन्धकुटी के रक्त-कमलासन पर महावीर नहीं, एक नग्न तलवार खड़ी है। और उसमें ज्ञान के सूरज फूट रहे हैं।
और वह तलवार रोहिणेय के मूलाधार में उतरती चली आ रही है। उसकी अंतड़ियाँ कट रही हैं, तहे बिंध रही हैं। ___.."और उसकी नस-नस में अजस्र माधुर्य उमड़ रहा है। उसके पोर-पोर में यह कैसा सर्वभेदी वीर्य हिल्लोहित हो रहा है । और वह अपने ही भीतर से उठ रहे वैश्वानर की ज्वालाओं में समाधिस्थ हो गया।
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