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________________ अर्हन्त महावीर के सिवाय त्रिलोक में, कोई मार भी नहीं सकता, तो तार भी नहीं सकता। मैं अपनी चोरियों का निवेदन करूँ, भगवन् ?' । - प्रभु निरुत्तर, नासाग्र दृष्टि से केवल देखते रहे। केवल सुनते और जानते रहे। 'मेरे पापों का अन्त नहीं। मेरी ग्लानि का पार नहीं। मैं पश्चात्ताप की आग में रात-दिन जल रहा हूँ। मुझे इससे उबारें, नाथ !' 'ग्लानि क्यों ? पश्चाताप कैसा ?' 'मैं चोर जो हूँ, भगवन्, महाचोर । लुटेरा, सर्वस्वहारी !' 'किसे लटता है ? सर्वस्व किसका है ?' 'मैं साहूकारों को लूटता हूँ, श्रेष्ठियों को लूटता हूँ, राजाओं और रानियों को लूटता हूँ। उनका सर्वस्व हर लेता हूँ !' 'सर्वस्व किसका है ?' 'साहूकार का, सम्राट का। नगर जनों का।' 'यहाँ कुछ किसी का सर्वस्व नहीं। सब अपना-अपना सर्वस्व है। बाहर और घर, कुछ किसी का नहीं । स्वत्व है केवल तत्त्व, केवल आत्मत्व । केवल अपनत्व ।' ___ 'लेकिन धन तो सम्राट और साहकार का ही है न, भगवन् ? मैं तो उसका चोर हूँ !' 'धन यहाँ किसी व्यक्ति का नहीं, वर्ग का नहीं, समस्त लोक का है। जब तक साहूकार है, तब तक चोर रहेगा ही। जब तक सर्वस्व का स्वामी सम्राट रहेगा, तब तक सर्वस्वहारी कोई रहेगा ही ! जब तक धन का संग्रह है, तब तक उसका लुटेरा रहेगा ही। जब तक सत्ता और सम्पत्ति कहीं केन्द्रित रहेगी, तब तक उसका आक्रमणकारी और अपहर्ता पृथ्वी पर पैदा होता ही रहेगा ।...' 'तो भगवन् मैं चोर नहीं ? मैं अपराधी नहीं ? मैं पापी नहीं ?' 'चोर तू अपना है, अपराधी तू अपना है, पापी तू अपना है, हत्यारा तू अपना है। किसी सेठ-साहूकार और सम्राट का नहीं ! किसी धनपति या सत्तापति का नहीं। जो स्वयम् ही चोर हैं, उनका चोर तू कैसे हो सकता है ? जो स्वयम् ही बलात्कारी हैं, उनका बलात्कारी तू कैसे हो सकता है ? जो स्वयम् ही हत्यारे हैं, उनका हत्यारा तू कैसे हो सकता है ?' 'तो फिर मैं कौन हूँ, भगवन् ?' 'इन दोनों से परे जो तीसरा है, वही तू है। तृतीय पुरुष, जो इस दुश्चक्र से ऊपर है। और जो चाहे, तो इसे उलट सकता है, तोड़ सकता है। वही तो महावीर है !' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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