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________________ २२ शिवोभूत्वा शिवम् यजेत् अनुक्रम से विहार करते हुए प्रभु इस समय दशार्ण देश में विचर रहे हैं। राजधानी है दशार्ण नगर। राजा हैं दशार्णभद्र । उस दिन सायंकाल की राजसभा में एक अजनवी चर-पुरुष अचानक आ कर हाज़िर हुआ। उसने राजा को सन्देश दिया कि : कल प्रातःकाल आपके नगर के 'ईशान चैत्य' में तीर्थंकर महावीर समवसरित होंगे। सुन कर राजा के हर्ष और गौरव का पार न रहा। जैसे मेघ की गर्जना से विदुरगिरि में रत्न के अंकुर प्रस्फुटित होते हैं, वैसे ही दूत की यह वाणी सुन कर राजा के सारे शरीर में हर्ष के रोमांच का कचुक उभर आया। तत्काल राजा दशार्णभद्र ने सभा के समक्ष घोषित किया 'हम कल सबेरे ऐसी समृद्धि के साथ प्रभु के वन्दन को जायेंगे, जैसी समृद्धि से पूर्वे कभी किसी ने प्रभु की वन्दना न की होगी। मंत्रियो, रातोरात हमारे राजमहालय से प्रभु के समवसरण तक, सारे राजमार्ग का ऐसा शृंगार करो, कि कुबेर की अलका का वैभव भी उसे देख कर लज्जित हो जाये। हमारी सारी निधियों का निःशेष रत्न-कांचन कल प्रभु की राह पर बिछा दो।' आज्ञा दे कर, राजा तत्काल उसी हर्षावेग में अपने अन्तःपुर के सर्वोच्च खण्ड में जा चढ़ा। वातायन से, दूर तक चारों ओर फैली अपने राज्य की पृथ्वी को उसने सिंह-मुद्रा से निहारा। उसे लगा, कि उससे बड़ा भूपेन्द्र इस समय भूतल पर कोई नहीं। .."ऐसा मैं, जब कल प्रातः अपने समस्त वैभव के साथ त्रिलोकपति महावीर की वन्दना करूँगा, तो तीनों लोकों का वैभव फीका पड़ जायेगा!' ."राजा को उस रात नींद न आयी। उसके मन में उमंगों के हज़ार-हज़ार फ़ानूस उजलते चले गये। 'मैं ऐसे वन्दना करूँगा, मैं वैसे वन्दना करूँगा। प्रभु मेरे ऐश्वर्य को खुली आँखों देखेंगे। वे मेरे रूप, राज्य और रनिवास की अनुपम विभा को एकटक निहारेंगे। वे मेरी भक्ति और वन्दना की अनोखी भंगिमाओं को देख कर विभोर हो जायेंगे। वे मेरी प्रार्थना के आँसुओं से विगलित हो जायेंगे। मैं, मेरा राज्य, मेरी समृद्धि, मेरी श्री-सम्पदा, मेरा सौन्दर्य, मेरा विशाल व्यक्तित्व, मेरी रानियों का अतुल्य लावण्य ! मेरी प्रार्थना के आँसू ! मैं मेरा मैं "मेरा मैं "मेरा"। और प्रभु ? वे केवल 'मैं' और 'मेरा' के एकमेव दर्शक, एकमात्र साक्षी। केवल इसीलिये वे मेरे प्रभु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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