SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९१ 'तो मैं प्रभु से दूर चला जाऊँ? मैं प्रभु को भूल जाऊँ ?' 'हाँ, दूर चले जाना होगा, एक दिन । भूल जाना होगा, एक दिन । स्वयम् महावीर तुम्हें ठेल देगा, एक दिन । तब जानोगे, कि तुम कौन हो, मैं कौन हूँ ? कल्याणमस्तु, गौतम ! ' प्रभु चुप हो गये । उनकी इस वज्र वाणी से सारे चराचर पसीज उठे । जीव मात्र गौतम के प्रति सहानुभूति से करुण - कातर हो आये । ...गौतम को लगा कि प्रभु ने उन्हें लोकाग्र की सिद्धशिला पर से, लोक के पादमूल में फेंक दिया है । देह का पिंजर भेद कर हंस, उस क्षण जाने किन चिदाकाशों में यात्रित हो चला । ''और उस उड़ान में भी गौतम के मन में एक ही भाव उभर रहा था : "ओह, मेरे प्रभु कितने सुन्दर हैं ? क्या तीर्थंकर महावीर का यह त्रिलोकमोहन रूप भी नाशवान है ? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता ! मैं काल को हरा दूंगा, और अर्हन्त के इस सौन्दर्य को एक न एक दिन अमर हो जाना पड़ेगा । मेरे लिये ! ... ' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy