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प्रभु का रूप भी अक्षय नहीं ?
सुर और असुर द्वारा समान रूप से सेवित श्री भगवान् पृष्ठा-चम्पा नगरी पधारे। वहाँ का राजा साल और उसका युवराज महासाल प्रभु के वन्दन को आये। धर्म-देशना सुनी। सहसा ही वे उन्मन हो गये। अरूप निरंजन के इस सौन्दर्य-राज्य से लौटना उनके लिये सम्भव न रहा। वह रूप देख लिया, कि जिसके बाद और कुछ देखने की इच्छा ही न रही।
सालराज का एक भांजा था गागली। वह उनकी इकलौती बेटी यशोमती और उनके जमाई पिठर का एकमात्र पुत्र था। अपने सिंहासन पर उसी का राज्याभिषेक कर के, साल और महासाल प्रभु के परिव्राजक हो गये। कालान्तर में विहार करते हुए प्रभु चम्पा में समवसरित हुए। भगवन्त की आज्ञा लेकर श्रीगुरु गौतम, साल और महासाल के साथ पृष्ठ-चम्पा गये । कहीं से कोई आवाहन तो था ही ! ... __ पृष्ठ-चम्पा में राजा गागली ने बड़े भक्ति-भाव से प्रभुपाद गौतम का वन्दन-पूजन किया। सारे पौरजन भी गुरु के दर्शन-वन्दन को आये। यशोमती
और पिठर भी श्रीगुरु चरणों में प्रणत हो, उनके सम्मुख ही बैठ गये। उनके बीच बैठा था गागली। देवोपनीत सुवर्ण-कमल पर आसीन हो देवार्य गौतम ने धर्म-वाणी सुनाई। सुन कर यशोमती, पिठर और गागली को लगा किउनके भीतर सदा-वसन्त फलों के वन हैं : और बाहर के संसार में पतझर ही पतझर है। भीतर का रति-सुख इतना सघन लगा कि बाहर से मन आपोआप ही विरत हो गया। पृष्ठा-चम्पा का राज्य प्रजा को अर्पित कर, राजा गागली माता-पिता सहित श्रीगुरु गौतम के पदानुगामी हो गये।
साल, महासाल, गागली, यशोमती और पिठर-ये पाँचों चम्पा के मार्ग पर गुरु गौतम के पद-चिह्नों का अनुसरण करते हुए चुपचाप विहार कर रहे हैं। उन पाँचों की चेतना इस समय एक ही महाभाव में एकत्र और सम्वादी है । उन्हें हठात् लगा, कि भीतर एक ऐसा आलोकन है, कि बाहर का अवलोकन अनावश्यक हो गया है। सहसा ही वे निरीह हो आये। वे एक ऐसे अन्तर-सुख में मगन हो गये, कि उन्हें कैवल्य और मोक्ष की भी कामना न रही । चाह मात्र एक चिन्मय लौ हो रही।
चम्पा पहुँच कर अपने पाँचों शिष्यों सहित श्रीगुरु गौतम समवसरण में यों आते दिखायी पड़े, जैसे वे पाँच सूर्यों के बीच खिले एक सहस्रार कमल की तरह
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