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बड़ी प्रगाढ़ मैत्री थी। विपाशा अपने भाई के गृह-त्याग की तैयारी से बहुत उदास और शोकमग्न रहने लगी थी। गर्व भी कम न था, कि उसका भाई महाप्रस्थान के पंथ पर आरोहण करेगा। लेकिन नारी हो कर ममता के आँसुओं की राह ही तो वह अपने भाई को मोक्ष-यात्रा का श्रीफल भेंट कर सकती थी। शालिभद्र की माँ और पत्नियाँ भी तो, आठों याम ममता के अश्रुफूल बरसा कर ही उसे समता के सिंहासन पर चढ़ने को भेज रही थीं। ___ उस दिन अपने पति धन्य श्रेष्ठी को नहलाते हुए, विपाशा की आँख से एक आँसू सहसा ही धन्य के चेहरे पर टपक पड़ा । विनोदी धन्य ने मज़ाक़ किया : 'आज मुझ पर ऐसा प्यार उमड़ आया, कि अश्रुजल से नहला रही हो?' विपाशा चुप ही रही। तो चपल धन्य श्रेष्ठी ने फिर उसे छेड़ा: 'अरे विपाशा, ऐसी भी क्या रूठ गयी, ज़रा से मज़ाक़ पर!' विपाशा भरे गले से बोली : 'तुम्हें तो हर समय मज़ाक़ ही सूझता रहता है । मेरा भाई हर दिन एक और शैया, एक और स्त्री त्याग कर जोगी होने जा रहा है, और तुम्हें कुछ होश ही नहीं ?' धन्य और ज़ोर से खिलखिलाकर बोला :
'अरे खुब होश है, विपाशा। तेरा भाई हीन सत्व है, असमर्थ है, कि बत्तीस परमा सुन्दरियों का अन्तःपुर त्याग कर, जंगल की धूल फाँकने जा रहा है ! छि: यह कायरता है। यह नपुंसकता नहीं, तो और क्या है ?'
यह सुन कर विपाशा तो एक गहरे मर्माघात से विजड़ित और मूक हो रही । पर उसकी अन्य स्त्रियों ने परिहास में अपने पति धन्य को ताना मारा :
- 'हे नाथ, यदि आप ऐसे महासत्व और शरमा हैं, तो हम भी देखें आपका पौरुष ! है हिम्मत, कि आप भी हमें त्याग कर आरण्यक हो जायें!'
शालिभद्र ने भी लीला-चंचल हँसी हँस कर ही तपाक से कहा :
'साधु साधु, मेरी पतिव्रताओ ! तुम धन्य हो, तुम मेरी सतियाँ हो। तुमने मेरे मोक्ष-कपाट की अर्गला खोल दी। यों भी शालिकुमार से वियुक्त होकर, मैं भला क्या इस घर में रहने वाला था। सोच ही रहा था, कैसे तुम्हारे मायापाश से मुक्ति मिले। लेकिन मेरा अहोभाग्य, कि तुमने स्वयम् ही काट दिये मेरे बन्धन् । 'मैं चला देवियो, लोकान के तट पर फिर मिलेंगे !' कह कर धन्य उठ खड़ा हुआ।
स्त्रियों ने रो-रो कर उससे अनुनय की, कि 'वह तो हमने निपट विनोद में ही कह दिया था, उससे भला इतना बुरा मान गये ?...नहीं, हम भी पीछे न छूटेगी। तुम्हारी सतियाँ होकर तुम्हारा सहगमन ही करेंगी। तुम जिस जंगल में विचरोगे, हम उसकी धूल होकर तुम्हारे चरणों में लोटती रहेंगी।'-धन्य बोला : 'धूल हो कर क्यों रहोगी, चाहो तो अपने ही सौन्दर्य का फूल हो कर रहना !'
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