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भी भाव फल जाता है। और सुन राजा, आज ही इन्द्र ने सभा में कहा कि 'श्रेणिक जैसा श्रद्धालु कोई श्रावक नहीं है।' दर्दुरांक देव इस पर विश्वास न कर सका। और वह यहाँ तेरी परीक्षा लेने चला आया। उसने गोशीर्ष चन्दन से अर्हत् के चरण चर्चित किये थे। वह दिव्य देवकुमार था। पर तुम्हें वह कोढ़ी दीखा। उसके चन्दन में तुम्हें पीव दीखा । क्योंकि तुम्हारे दर्शन पर अब भी मोह का आवरण पड़ा हुआ है। सो यह तुम्हारा ही दृष्टिभ्रम था, कि तुम सुन्दर में भी असुन्दर ही देख सके । देव में भी कोढ़ी देखते रहे । तुम्हारे भीतर का कोई छुपा कोढ़ ही तुम्हें अब भी स्वरूप में विरूप दिखा रहा है । दर्दुरांक को देखो श्रेणिक, उसे पहचानो। "उसने तुम्हारी भ्रान्ति का पर्दा चीर दिया !'
यह सारा वृत्तान्त सुन कर श्रेणिक महाभाव प्रीति से भर आया। कोढ़ी और देव का अन्तर उसके मन से हठात् दूर हो गया। लब्धि के आनन्द से पुलकित हो कर श्रेणिक ने पूछा :
'आप की छींक पर वह अमंगल बोला, और सब की छींक पर वह मंगल बोला, इसका क्या कारण, भगवन् ?'
प्रभु के पद-नखों से उत्तर सुनायी पड़ा :
'सुन राजा, इस रहस्य को भी सुन । अर्हत् को तो छींक का प्रमाद होता नहीं। वह भी एक देवमाया ही तो थी। मुझ से उसने कहा कि : 'मृत्यु पाओ'। तो उसका आशय था कि तुम अब संसार में क्यों ठहरे हो, शीघ्र मोक्ष-लाभ करो। तुझ से कहा, राजन्, कि : 'जियो'। अर्थात् तुझे तो जीने में ही सुख है, मर कर तो नरक जाना है। अभयकुमार से कहाकि : 'जियो या मरो।' यानी जियेगा तो धर्म करेगा, मरेगा तो अनुत्तर विमान में जायेगा। और काल-सौकरिक कसाई से कहा कि : 'तू जी भी नहीं, और मर भी नहीं। क्यों कि जियेगा तो पापकर्म करेगा, मरेगा तो सातवें नरक जायेगा। देख, राजन्, देख, ज्ञान के इस कमल-कोश को देख। इसकी मुद्रित पाँखुरियों का पार नहीं।'
श्रेणिक सुन कर प्रसन्न हुआ, लेकिन अगले ही क्षण उसका समाधान भंग हो गया। उसका प्राण उचाट हो गया। उसने कम्पित कंठ से पूछा :
_ 'आप जैसे जगत्पति मेरे स्वामी हैं, और मुझे नरक में पड़ना होगा, भगवन् ? यह कैसा अपलाप है। यह किसका विधान है !'
'यह तेरा अपना ही विधान है, श्रेणिक ! तेरा विधाता तू ही है, मैं या कोई और अन्यत्र नहीं।'
'लेकिन मेरे सर्वसत्ताधीश प्रभु मेरे विधान को तोड़ने में समर्थ नहीं ? ऐसा कैसे हो सकता है ? जो प्रारब्ध को न टाल सके, वह प्रभु कैसा ?' __प्रभु ने कोई उत्तर न दिया। वे अपने स्थान पर से ही अन्तर्धान होते दिखाई पड़े।
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