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'वैशाली में गृह-युद्ध की आग धधक रही है, भगवन् । महावीर को यहाँ मूर्त करने के लिये, यह गृहयुद्ध हमें लड़ लेना होगा। हम इसी क्षण प्रस्तुत हैं। श्रीभगवान् आज्ञा दें, तो गृहयुद्ध का शंखनाद करूँ, और हम इन राजन्यों से वैशाली की सड़कों पर निपट लें। वैशाली के भाग्य का फैसला हो जाये !' ___'गृहयुद्ध अनिवार्य है, युवान् । वह सर्वत्र है। उसे लड़े बिना निस्तार नहीं हर मनुष्य अपने भीतर एक गृहयुद्ध ले कर जी रहा है। रक्त, मांस, हड्डी, मज्जा, मस्तिष्क, हृदय, प्राण, मन, साँस और बहत्तर हजार नाड़ियाँ-सब एक-दूसरे के साथ निरन्तर युद्ध लड़ रहे हैं। साँस और साँस के बीच युद्ध है। घर-घर में गृहयुद्ध अनिर्वार चल रहा है। मनुष्य और मनुष्य के बीच, मित्र और मित्र के बीच, आत्मीय स्वजनों के बीच भी निरन्तर गृहयुद्ध बरकरार है। वस्तुओं और व्यक्तियों के बीच हर समय लड़ाई जारी है। हम एक-दूसरे के घर में घुसे बैठे हैं। हम पर-नारी पर बलात्कार करने की तरह, एक-दूसरे के भीतर बलात् हस्तक्षेप कर रहे हैं। हम अपने घर में नहीं, दूसरे के घर में जीने के व्यभिचार से निरन्तर पीड़ित हैं। तेजस्वी युवान्, अपने में लौटो, अपने साथ शान्ति स्थापित करो। अपने स्व-भाव के घर में ध्रुव और स्थिर हो कर रहो। अपने आत्मतेज को अपराजेय बना कर, निश्चल शान्ति में वैशाली के संथागार का द्वार तमाम प्रजाओं के लिए खोल दो। वहाँ विराजित प्रजापति ऋषभदेव के सिंहासन पर से अष्ट कुलक नहीं, वैशाली का जनगण राज्य करे। अपने भाल के सूरज को उत्तान करके लड़ो युवान्, ताकि राजन्यों के सारे शस्त्रागार उसके प्रताप में गल जायें। और उस गले हुए फ़ौलाद में, हो सके तो महावीर को ढालो। उस वज्र में महावीर के मार्दव, आर्जव, प्रशम, प्यार और सौन्दर्य को मूर्त करो।'
तभी जनगण का एक और युवान् वह्निमान हो कर उठ आया :
'वैशाली में रक्त-क्रान्ति हो कर रहेगी, भगवन् ! उसके बिना जन-राज्य सम्भव नहीं। राज्य-दल और उसके पृष्ठ-पोषक श्रेष्ठी-साहुकार एक ओर हैं,
और समस्त सामान्य प्रजाजन दूसरी ओर एक जुट कटिबद्ध हैं। बरसों हो गये, प्रजा की इच्छा के विरुद्ध राज्य ने उस पर युद्ध थोप रक्खा है। प्रजा युद्ध नहीं चाहती, सैनिक युद्ध नहीं चाहते, यह केवल सत्ता-सम्पत्ति के लोभी गद्धों का आपसी युद्ध है। और निर्दोष प्रजा उसमें पिसते ही जाने को मजबूर है। वैशाली के हजारों-लाखों मासूम जवान इस युद्ध की आग में झोंक दिये गये हैं। हम इस युद्ध को अब और नहीं सहेंगे, भगवन् । रक्तक्रान्ति अनिवार्य है, स्वामिन् । हम इन राजन्यों का खून वैशाली की सड़कों में बहा कर, अपने मासूम खून का बदला इनसे भुना कर रहेंगे। आज्ञा दें भगवन्, तो रक्तक्रान्ति की घोषणा कर दूं..!'
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