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तेरा विधाता तू ही है
"अचानक यह कैसा अपलाप घटित हुआ ? स्वरूपमान प्रभु के सान्निध्य में यह कैसी विरूपता, कुरूपता ?
गलित-पलित काया वाला एक कुष्ठी वहाँ आया। और वह हड़काये श्वान की तरह, प्रभु के समीप बैठा दिखायी पड़ा। सम और सम्वाद के सुन्दर राज्य में ऐसा वैषम्य क्यों कर? ___अरे यह कैसी पिशाच-लीला है ? वह कुष्ठी निर्भय निःशंक हो कर अपने रक्त-पीव से चन्दन की तरह, प्रभु के चरणों को चर्चित करने लगा। देख कर, मनुष्य-कक्ष में बैठा राजा श्रेणिक क्रोध से बेकाबू हो उठा : अरे यह गलितांग मांस का लोथड़ा, यह महा पापात्मा कौन है ? इसका इतना साहस, कि जगत्-स्वामी प्रभु की ऐसी आशातना (अवमानना)कर रहा है ! प्रभु ने इसे रोका नहीं ? इन्द्रों और माहेन्द्रों की सत्ता भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती? परवाह नहीं, मैं उसका वध करूँगा। यह उठे तो
वहाँ से। ...
___इतने में ही एक और अपलाप घटित हुआ। अठारह देह-दोषों से रहित अर्हन्त तो छींकते नहीं। पर यह क्या हुआ, कि जैसे अशोक वृक्ष में से छींक सुनाई पड़ी। मानो कि महावीर को छींक आगई। और तत्काल वह कुष्ठी बोल पड़ा : ‘मृत्यु पाओ'! कि ठीक तभी राजा श्रेणिक को छींक आयी। तो कुष्ठी बोला : 'बहुत जियो'। कि सहसा ही अभय राजकुमार छींक पड़े। कुष्ठी बोला : 'जियो या मरो'। एक सन्नाटा, और फिर काल-सौकरिक कसाई छींक उठा, तो कोढ़ी बोला : 'जी भी नहीं, मर भी नहीं । ___'ऐं, इस कोढ़ी ने प्रभु से कहा, कि तुम मर जाओ?' श्रेणिकराज क्रोध से आग-बबूला हो गये। उन्होंने पास ही बैठे अपने सुभटों को आज्ञा दी कि जैसे ही यह मौत का कुत्ता वहाँ से उठे, इसे पकड़ लेना।"धर्म-सभा विसर्जन होते ही, कोढ़ी प्रभु को नमन कर वहाँ से उठा, कि तभी-किरात जैसे शूकर को घेर लेते हैं, वैसे ही श्रेणिक के सुभटों ने उसे घेर लिया। लेकिन यह कैसी विचित्र घटना, कि वह कोढ़ी उनके देखते-देखते क्षणवार में ही दिव्य रूप धारण कर, एक नक्षत्र की तरह आकाश में उड़ गया।"
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