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उस पाल में आ पहुँचा, जहाँ वे चार सौ निन्यानवे चोर रहते थे । पूर्व संयोग से उन चोरों में वह घुलमिल गया । और चौर्य कला में निपुण हो, उनका सहयोगी हो गया ।
'उधर उसकी बहन यौवन को प्राप्त हो कर कुलटा हो गई । वह स्वच्छन्द विचरती हुई एक गाँव में आ पहुँची। योगायोग कि उन चार सौ - निन्यानवे चोरों ने तभी उस गाँव में डाका डाला। उसे खूब लूटा । वहाँ उनके हाथ लगी वह स्वैराचारी कुलटा युवती । सौंदर्य और यौवन से कसमसाती हुई । उन्होंने उसे पकड़ कर अपने दुर्ग के अन्तःपुर में क़ैद कर दिया, और वे सब उसे अपनी अङ्गना मान कर उसका उपभोग करने लगे । अति सम्भोग से वह दिन-दिन क्षीण, पीली और श्रीहीन हो चली। तब उन चोरों को भी उस पर करुणा आ गयी। उन्होंने सोचा, यह बेचारी अकेली बाला हम सब को कै दिन झेल सकेगी? ऐसे तो यह मर जायेगी । - - ऐसा सोच कर वे एक और स्त्री को अपनी भोग्या बना लाये । तब वह पहले वाली कुल्टा ईर्ष्यालु हो कर इस नवागता के छिद्र खोजने लगी । और उसे अपनी सौत मान कर रातदिन डाह से जलने लगी ।
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'एक बार वे सारे चोर कहीं चोरी करने गये थे। तब कुछ मायाछल करके, वह पूर्वाङ्गना कुलटा इस नयी बहु को किसी बहाने एक कुएँ के पास ले गयी । बोली कि : 'भद्रे, देख तो इस कुएँ में कुछ है !' वह सरल स्त्री कुएँ में झाँकने लगी, कि तभी उस कुलटा ने उसे धक्का दे कर, उस अन्धकूप में गिरा दिया। लौट कर चोरों ने उससे पूछा कि वह नवोढ़ा कहाँ गयी ? पूर्वाङ्गना बोली-- मुझे क्या पता, तुम अपनी स्त्री को सम्भाल कर क्यों नहीं रखते। चोरों ने समझ लिया, कि निश्चय ही इस शंखिनी पूर्वा ने उस बेचारी की ईर्ष्यावश हत्या कर दी है ।
'... हठात् वह नवागत ब्राह्मण उन पाँच सौ चोरों में से छिटक कर खड़ा हो गया । सहसा ही उसका हृदय किसी अज्ञात आघात से विदीर्ण हो उठा । उसके जी में एक जलती शलाका-सा प्रश्न उठा : क्या यह मेरी वही दुःशीला बहन हो सकती है ? मैंने अपनी बहन को भोगा? कदाचित् "" !
'विपल मात्र में वह द्विज-पुत्र उस पाँच सौ की पाँत से बाहर हो गया । वह सारे जगत् से बाहर खड़ा हो गया । निर्वासित, एकाकी, अनाथ, सर्वहारा । उसने पाया कि इस संसार में उसका अब कोई हीला हवाला न रहा । वह कहाँ जाये, कहाँ खड़ा हो ? किससे पूछे अपना पता - मुक़ाम ? क्या यहाँ उसका कोई सन्दर्भ नहीं ? और कौन है वह बहुपुरुष - गामिनी कुलटा नारी ? उसकी बहन ? कौन बताये ? तभी उसे कहीं से सुनाई पड़ा: 'यहाँ सर्वज्ञ बिराजमान हैं ।'
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