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________________ १२ तुम्हारी सम्भावनाओं का अन्त नहीं उस प्राक्तन काल में, आर्य घरों में एक नियम अटल चलता था। किसी भी गृहस्थ या श्रावक के यहाँ अतिथि को आहार दिये बिना परिवार को भोजन नहीं परोसा जाता था। 'अतिथि देवोभव' ही आर्य गहस्थ की मर्यादा थी। प्रायः गह-स्वामिनी ही सबेरे के नित्य कर्म से निवृत्त हो, द्वार पर अतिथि के स्वागत को खड़ी रहती थी। महारानियां भी इसका अपवाद नहीं थीं। तिस पर अतिथि के रूप में कोई साधु आ जाये, तो भाग जागे । __ सो नित्य-नियमानसार उस दिन भी महादेवी चेलना, श्रीफल-कलश साजे सिंह-तोरण पर अतिथि का द्वारापेक्षण कर रही थीं। कि अचानक द्विमास-उपवासी महामुनि वैशाखदत्त गोचरी करते हुए दूर पर आते दिखाई पड़े। - चेलना गद्गद् हो गयी। उसे पता था कि वे दो महीने से उपासे हैं। बार-बार अन्तराय आने पर, वे अनियत काल के लिये आहार त्याग कर कायोत्सर्ग में शिलावत् खड़े रह गये थे। सुना जाता था, कि उनकी तपस्या से शिशिरकाल में भी पर्वतों का शिलाजीत पिघल कर बहने लगता है। स्वयम प्रकृति के आँसू आ जाते हैं। चेलना ने निःश्वास छोड़ते हुए मन ही मन कहा : हाय, ऐसे वीतराग पुरुष को देख कर भी किसी का हृदय नहीं पसीजा ? कि बार-बार इनके आहार में अन्तराय आती रही। और प्रायः ये दीर्घ उपवासों पर उतर जाते रहे। वह प्रार्थना से कातर हो आई : 'हे मेरे अनुत्तर प्रभु, बताओगे नहीं, किस बाधा से श्रमणोत्तम वैशाख मुनि को अन्तराय हो रही है ? ...' कि तभी वे कृशकाय तपस्वी सम्मुख आते दिखायी पड़े। 'भो स्वामिन, तिष्ठः तिष्ठः, आहार-जल शुद्ध है, आहार-जल कल्प है।' कहते हुए चेलना ने उनका आवाहन कर उन्हें पड़गाहा, और सविनय बिना पीठ दिये, पीछे पैरों चलती उन्हें पाकशाला में ले गयी। उनका पाद-प्रक्षालन कर के जब वह अंग-प्रक्षालन करने लगी, तो अचानक कुछ देख कर वह चौंकी।" तपस्वी का उपस्थ उद्वेलित था। उनका इन्द्रिय-वर्द्धन हो रहा था । आत्मरमण योगी के शरीर में यह कैसा उत्तेजन, उत्तोलन ?"फिर भी चेलना त्वचा पर न रुक सकी। मांस पर न रुक सकी । वह उनके मनोदेश में निर्बाध उतराती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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