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में कभी विछोह नहीं होता। दुर्गन्धा और सुगन्धा दोनों को, केवल वही समान रूप से अपना सकते हैं। ...'
कह कर आभीरी चुप हो गई। फिर बोली :
'एक विनती है मेरी, मानोगे? दुर्गन्धा को भी भूल जाना, सुगन्धा को भी भूल जाना। केवल अपने में रहना। वचन दो, रहोगे न?'
राजा की आँखों में वियोग और विराग के आँसू एक साथ उमड़ आये। वे एकटक उस मुक्त हंसिनी को देखते रह गये। और वह जाने कब उनके हाथ से उड़ निकली। दूर वनान्तर में पीट दिये जाती दिखायी पड़ी। और हठात् जाने कहाँ अन्तर्धान हो गयी।
सभी रानियों ने दूर से यह विचित्र दृश्य देखा। किस रहस्य-लोक से आयी थी वह आभीरी? और क्या उसी रहस्य की जगती में वह फिर लौट गयी? आश्चर्य से हताहत वे सब देखती रह गयीं।
राजा दूर परिप्रेक्ष्य में एकाकी, प्रतिमासन में खड़े दीखे। चेलना ने मुस्करा कर कहा :
- 'अलबिदा, आभीरी! कोई कहीं जाता-आता नहीं, खोता नहीं। शाश्वती के चन्द्र-सरोवर तट पर फिर तुम से भेंट होगी ही।'
सभी रानियां सुन कर निःशब्द हो रहीं।" और वे महाराज सहित चेलना देवी का अनुगमन कर गयीं।
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