________________
खिल-खिला कर हंस पड़तीं। राजा के बहुत अनुनय करने पर भी कोई कुलवन्ती रानी उन पर सवार होने को राजी न हो सकी।
योगात् वह नवयौवना आभीरी रानी राजा से जीत गयी।"क्षण भर तो वह झिझकी, और फिर वह वन्या एकाएक क्रीड़ा-मत्त हो कर झरने की तरह खिल-खिलाती हुई, अपने प्रीतम की पीठ पर सवार होकर हंस-लीला करने लगी। फिर वह दुरन्त हो कर जैसे घोड़ा दौड़ाने लगी। कितना तो वेग था उसकी उस उन्मत्त अश्व-क्रीड़ा में, उसकी उन दोलायित जंघाओं में। राजा को उस थनगनते स्पर्श की गाढ़ता में, एकाएक याद हो आया : 'प्रभु ने कहा था, यही दुर्गन्धा एक दिन तेरी रानी होगी। निशानी दी थी कि क्रीड़ा में जीतने पर यदि कोई तेरी रानी तेरे पृष्ठ भाग पर चढ़ कर हंस-क्रीड़ा करे, तो जान लेना कि यह वही दुर्गन्धा है, जो अभी राह किनारे परित्यक्त पड़ी है।"राजा का हृदय जाने कैसी तो तीव्र आरति और रति से एक साथ भर आया।"
__ श्रेणिक तत्काल उस आभीरनी रानी को ले कर वनानी के किसी एकान्त वानीर कुंज में चले गये। तलदेश की स्निग्ध पल्लव-शैया पर उससे युगलित हो कर बैठते ही वे विवश हो गये। और एक वेतस-लता में उँगली उलझाते हुए अपनी आभीरी रानी से, उसके पूर्व जन्म से लगाकर अब तक की वह सारी कथा कह गये, जो उन्हें श्री भगवान् के पादमूल और अशोकवृक्ष में से सुनाई पड़ी थी।
सुनते-सुनते आभीरी की अर्धोन्मीलित आँखों में, उसके जाने कितने जन्मान्तर चित्रपट की तरह खुलते चले गये। "और इस जन्म में अब दुर्गन्धा, फिर सुगन्धा, फिर आभीर-कन्या। फिर रानी, साम्राज्ञी! कौन कुल, कौन ग्राम, कौन गोत्र, कौन माता-पिता ? कौन बता सकता है ? अपने सिवाय तो अपना कोई नहीं यहाँ । अपनी आत्मा के सिवाय तो अपना कोई पता-मुक़ाम नहीं यहाँ। आज की सुगन्धा फिर दुर्गन्धा भी तो हो ही सकती है। आज की रानी, फिर राह किनारे की परित्यक्ता बालिका भी तो हो ही सकती है। आभीरी का चित्त क्षण मात्र में संसार-मूल से कट गया। उसका जी अपनी जन्म-नाल से विच्छिन्न हो गया।
वह उठ खड़ी हुई। आँचल माथे पर ओढ़ कर आँखों में आंसू भर, पति के चरण छू लिये। फिर विगलित स्वर में बोली :
'तुमने मेरा वरण कर, मुझे तार दिया, स्वामी। चिर काल तुम्हारी कृतज्ञ रहूँगी। अब मैं संसार में नहीं ठहर सकती। जाऊँगी उन्हीं सर्वज्ञ, सर्वप्रीतम, सत्य-नित्य महावीर प्रभु के पास, जिनसे मिलने पर जन्म-मरण कट जाते हैं, भवान्तर समाप्त हो जाते हैं, सुख-दुख की सांकल टूट जाती है, जिनके मिलन
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org