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और उनसे चुराया धन बरामद करूं। रंग-मण्डप के सब द्वार बन्द कर दिये जायें। मुख द्वार से एक-एक कर सब नर-नारी बाहर निकलें। मैं एक-एक की तलाशी लूंगा, और चोरों को रंगे हाथ पकडंगा!'
सारा नर-नारी वृन्द खूब ठहाका मार कर हंस पड़ा। खूब हैं हमारे अभय राजा! इस बार कौमुदी उत्सव में इन्होंने चोर-पकड़-क्रीड़ा का यह नया खेल रचा कर, बरबस ही जन-जन का मन मोह लिया। और एक-एक कर रंगगुलाल में नहाये स्त्री-पुरुष रंग-मण्डप के मुख द्वार से निकलने लगे। अभय निःसंग लीला-कौतूहल की भंगिमा से हर निकलने वाले स्त्री-पुरुष के वस्त्र, केशपाश और पान-रचे मुखों की भी छानबीन करने लगा। अनुक्रम से जब वह आभीर कुमारी निकलने लगी, तो उसकी झड़ती लेते हुए अभय का हाथ उसके पल्ले की एक गाँठ पर पड़ गया। अभय ने हस कर वह गाँठ खोली, तो उसमें से महाराज की वह स्व-हस्ताक्षरित मुद्रिका निकल आई।
अभय ने बड़ी प्यार भरी मृदु भंगिमा से पूछा :
'यह ऊर्मिका तूने क्यों चुराई, कल्याणी ?' __ लड़की हैरान हो गयी। उसने मुद्रिका चुराई ?"हाय, किसने उसके साथ यह चोट की है ? और वह कुछ गुनती-सी मीठी-मीठी लजा कर झुक आयी। उससे उत्तर न बना। अभय ने उसकी चिबुक कनिष्टा से छ कर उठा दी और बोला :
'तुमने उत्तर न दिया, सुन्दरी ! तुमने यह मुद्रिका कहाँ से ली?' . चोरी का कलंक सुन उस अहीर बाला ने दोनों कानों पर हाथ धर लिये। फिर रुद्ध कण्ठ से बोली :
'मुझे तो कुछ भी नहीं मालूम !'
निर्दोष कुरंगी जैसी भूली-भौरी ताकती उस कुमारिका का वह विलक्षण सौन्दर्य देख कर अभय स्तब्ध हो रहा। निश्चय ही इसने समुद्रजयी श्रेणिक का चित्त चुरा लिया है। पिता के इस अपरिसीम भोलेपन पर पुत्र को मन ही मन बहुत हंसी आई और बहुत प्यार भी आया। सामने मुग्ध-मौन खड़ी लड़की से अभय ने कहा :
'तुम अद्भुत हो, आभीरी। चरा कर भी नहीं मालूम कि चुरा लिया है ? इस सरलपन पर मैं बलिहार! मगधनाथ श्रेणिक इस भोलेपन पर साम्राज्य वार देंगे। आओ, अपने महाराज से मिलो, कल्याणी। तुम्हारे रत्न का मोल केवल वे ही परख और चुका सकते हैं !'
'आओ, बाले !' कह कर अभय बेहिचक उसका हाथ पकड़ कर उसे सम्राट के समक्ष ले गया। चौनजर होते ही कन्या माधवी लता-सी लरज कर
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