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सुन कर माली आश्चर्य में डब गया : 'अहो, सचमुच ही यह सत्यवती बाला कोई महासती है ।' माली कन्या के पैरों में गिर पड़ा और बोला : 'माँ, मुझे क्षमा करो । बोलो, तुम्हारा क्या प्रिय करूँ ?' लड़की हँस कर बोली : 'अपनी प्रिय चाह पूरी करो मुझ में, उद्यानपाल ! वही मेरी श्रेयस् है ।' माली से आया। बार-बार क्षमा माँगी और उसके चरण छू कर उसे विदा कर दिया ।
'वहाँ से लोट कर उस बाला ने राक्षस को वह बताया, जो माली के साथ घटा । सुन कर राक्षस ने सोचा- 'क्या मैं उस माली से भी हीन हूँ, जो इसका भक्षण करूंगा ?' उसने सोनाली को स्वामिनी मान कर सर नवाँया और जाने की अनुमति दे दी । वहाँ से लौटते वह चोरों के पास आ कर बोली : 'बन्धुओ, अब तुम मेरा सर्वस्व लूट लो मैं हाज़िर हूँ ।' फिर यह वृत्तान्त भी सुनाया कि माली और राक्षस ने उसके साथ कैसा सलूक किया । चोर परस्पर बोले : 'अरे हम क्या उस माली और राक्षस से भी गये-बीते हैं, कि इस सतवन्ती भागवती को लूटेंगे ?' उन्होंने सोनाली से क्षमा याचना कर कहा : 'देवी, तू तो हमारी वन्दनीया माँ - बहन है । हमें कल्याण का आशीर्वाद दे । और सुखपूर्वक अपने पति के पास लौट जा ।'
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'उस वासर-कामिनी सोहागिन बाला ने लौट कर चोर, राक्षस और माली की कथा अपने पति को सुनाई। पति तो सुन कर पानी-पानी होता आया । उसके आनन्द की अवधि न रही । विपल मात्र में ही वे उस सुख भोग में मगन हो गये, जहाँ एक दो हो कर दो फिर एक हो जाते हैं । सबेरे उठ कर उसने उस सती को अपने सर्वस्व की स्वामिनी बना कर उसके आगे माथा झुका दिया | उत्तम वर पाने को कामदेव की पूजा के लिये फुल चुराने वाली उस सदा - कुंवारी बाला को समझ न पड़ा कि वह क्या करे । कथा के सभी पात्र कितने अजीब, दुष्कर, दुःसाध्य, अबूझ हैं, हे नगर-जनो ?
'तो पूछता हूँ नगर- जनो, कहानी पसन्द आई ?' उत्तर में भाव-गद्गद् लोगों ने अभय राजा की जय-जयकार की । और कहा कि कहानी आगे बढ़ाओ । अभय ने कहा- 'मेरी कहानी का अन्त होता ही नहीं। आगे फिर कभी सुनाऊँगा । अभी तो मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो । सोच कर बताओ, इन सभी में सबसे दुष्कर कार्य करने वाला कौन ? कन्या का पति चोर, राक्षस या माली ?' उत्तर में— जो लोग स्त्री के ईर्ष्यालु थे वे बोले : सर्व में उसका पति दुष्कर करने वाला है, जिसने अपनी अनंग- लग्ना नवोढ़ा को पर पुरुष के पास भेज दिया । क्षुधातुर लोग बोल पड़े : सब से दुष्कर कार्य किया राक्षस ने, कि क्षुधातुर होते हुए भी, सुभग मांसला, मधुर रक्ता कन्या को उसने छोड़ दिया । जार पुरुष बोला : सबों में दुःसाध्य साधन किया माली ने, जिसने मध्य रात्रि में स्वयमेव रमण-सुख देने को पास आयी युवती
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