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बड़े खिन्न स्वर में यह बात सारिका को बताई । सारिका फिर वैसे ही खूब जोर से खिलखिला पड़ी। बोली :
'अय विद्यापति, चोरी कर सकोगे ? '
'तुम्हारे लिये दुनिया उलट सकता हूँ, सारी ।'
'तो सुनो, महादेवी चेलना के 'सर्व ऋतु वन' में एक सुन्दर आम्रकुंज है । वहाँ देवी प्रायः अकेली रमती हैं। वहीं उनके एक प्रिय आम्रवृक्ष की डाल पर अभी उत्तम आम्रफल पक आया है । कल वह देवी की गोद में अपने आप चू पड़ेगा। वे उसे अर्हत् को नैवेद्य कर अपने स्वामी श्रेणिक को खिलायेंगी । वही आम चुरा लाना होगा, मातंग । वहाँ प्रवेश सहज नहीं ! पंचशैल पहरा देते हैं। चुरा ला सकोगे आधी रात वह आम्रफल ? '
'कल सबेरे वह आम तुम्हारी हथेली पर होगा, सारी । अब मुझे जाना होगा ।'
मातंगपति विपल मात्र में आँख से ओझल हो गया । सारिका कांप उठी : 'हाय, मेरा कैसा दोहद, कहीं ये आपदा में न पड़ जायें। ठीक मझ रात में मातंग सारी बाधा पार कर उस आम्रकुंज में पहुँच गया । और जैसे ज्योतिषी नक्षत्रों को ताकता है, वैसे ही वह उस आम्रफल को टोहने लगा । लेकिन फल बहुत ऊँची डाल में कहीं छुपा था, और वृक्ष पर चढ़ना साध्य नहीं था । डाल-पात खड़कने से वनपाल का भी डर था । एकाएक वह फल कहीं शनि ग्रह - सा चमक उठा । तब मातंग ने 'अवनामिनी' विद्या से ऊँची आम्र डाल को नीचे तक झुका कर वह दिव्य फल और अन्य बहुत से आम झटपट तोड़ लिये ।
इधर सबेरे मातंग ने वह आम्रफल सारिका को खिला कर उसकी साध पूरी, और उधर देवी चेलना अपने आम्रकुंज में आयीं। उन्होंने देखा कि वह दिव्य आम्रफल किसी ने तोड़ लिया है। सारे आम्रकुंज को जैसे किसी ने लूटा है, और वह वाटिका मानो भ्रष्ट चित्रोंवाली चित्रशाला जैसी अप्रीतिकर हो पड़ी है। रानी ने जा कर महाराज को बताया, कि यह असंभव कैसे घट गया ? महाराज ने तुरन्त सारे मंत्रों के मंत्रीश्वर अभय राजकुमार को बुलवा कर आज्ञा दी, कि :
'जिसका पग-संचार भी देखने में नहीं आता, आम्रफल के उस चोर को खोज लाना होगा, अभय । जिस चोर की ऐसी अतिशय अमानुषी शक्ति है, वह कभी अन्त:पुर में भी तो प्रवेश कर सकता है ।'
'कुछ दिन का समय दें, बापू, चोर स्वयम् यहाँ हाजिर हो कर चोरी स्वीकार लेगा ।'
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