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आम्रफल का चोर
__राजगृही के दक्षिणी उपान्त में एक उपनगरी है, 'मनोवती'। वहाँ मगध के कई श्रेष्ट गुणीजन और कलावन्त रहते हैं। वहीं रहता था, विद्या-सिद्ध मातंगपति । था तो वह चाण्डाल, लेकिन चर्या से वह ब्राह्मण था। उसे अनेक दैवी विद्याएं सिद्ध थीं। वह शीत ऋतु में नदी-कछारों में बैठ कर, जल में उतर कर, विषले जन्तुओं से भरी विजन कन्दराओं में आसन जमा कर, विद्यासाधन करता था। ऐसे समय उसे कई औपपातिक देवों और यक्षियों के दर्शन हो जाते। उनसे उसे सीधे कई बीक्षाक्षर प्राप्त हुए हैं। उनके बल वह वर्षा कर सकता है, अन्तरिक्ष में विचर सकता है, जल पर और अग्नि में चल सकता है। सात तालों में रक्खी चीज उड़ा सकता है। एक नगर से पूरा मन्दिर या भवन उठा कर रातोंरात दूसरे नगर में ले जाकर रोप सकता है। कई भवजनों की अनेक आधि-व्याधि वह दूर कर देता है। किंवदन्ती है कि उसे वैताढ्य की विद्याधर नगरियों के कई विद्याधरों से भी अचिन्त्य विद्याएँ प्राप्त हुई हैं।
मातंग की पत्नी सारिका सचमुच ही वन में मैना के गीत जैसी मीठी आवाज वाली है। है तो वह कृष्णागुरु जैसी काली, लेकिन उसके अंग-अंग में नवीन आम्र-पल्लव की स्निग्धता और लोनापन है। घने पल्लवों से छायी बावली जैसी वह गम्भीरा है। उस बार कार्तिक मास में वह गर्भवती हुई। तो माघ-पूस में उसे दोहद पड़ा कि वह डाल-पका ताजा तोड़ा आम्रफल खाये। उसने अपने पति से कहा कि : 'मुझे ताजा आम तोड़ ला कर खिलाओ, और मेरी साध पूरो।' मातंग ने कहा :
'मारी, विचित्र है तुम्हारा दोहद, अकाल में आम कहाँ से आये ?'
'अजी तुम तो विद्याधर हो। माटी की चिमटी से मनमाँगी चीज बना सकते हो। मुझे बे-मौसम आम तक नहीं खिला सकते !' और सारिका मंजीर-सी हंस पड़ी।
'सो तो तारा तोड़ लाऊंगा, सारी। तुम्हारी हर साध पुरेगी ही।'
'मातंग ने सारी विद्याएँ चुका दीं। लेकिन यह क्या हुआ, कि वह आम्रफल उपलब्ध न कर सका। उसे लगा कि किसी दूसरे महासिद्ध की शक्ति इस समय काम कर रही है, तो उसकी विद्याएँ व्यर्थ हो गई हैं। मातंग ने
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