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कर भस्म कर दिया होगा ? हा हन्त, अनर्थ अनर्थ अनर्थ ! अहंन्त, अर्हन्त, रक्षा करें, रक्षा करें । लाज रखें, बाण करें नाथ, वैतरणी भी मुझे डूबने को ठौर न देगी ।...'
और राजा मानो काल के चक्र नेमि को झंझोड़ता-उखाड़ता हुआ, अवकाश के बाहर अपना रथ फेंक रहा था।
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श्रेणिक लौट कर सीधा अपने निजी राज-कक्ष में गया । तत्काल अभयकुमार को तलब किया गया। "अविलम्ब उपस्थित हो कर अभय राजकुमार पिता के समक्ष दण्डवत् में नत हो गया ।
'क्या तुमने सच ही मेरी आज्ञा का पालन किया, अभय ?'
'मगधनाथ श्रेणिक की आज्ञा तो तत्त्व तक नहीं टाल सकते । फिर मेरी क्या बिसात, बापू !'
'नराधम, पिशाच, मातृ-हत्यारे, मेरे सामने से हट जाओ ! अपनी मांओं को जला कर भस्म कर दिया तुमने ?'
राजा को मूर्छा के हिलोरे आने लगे। लेकिन उधर अभय अपनी चंचल हंसी को दबा कर, गंभीर मुद्रा में बोला : _ 'देख आऊँ, तात, भस्म हो गई कि नहीं ?' .. ___निर्लज्ज, ऐसा महापातक करके भी परिहास कर रहा है रे ? तू स्वयं ही क्यों न उस अग्नि में कद कर भस्म हो गया ?'.
'कूद पड़ा था, बापू, लेकिन पता नहीं कैसे उन लपटों में भी मैं चलता रहा । तो उन ज्वालाओं ने मुझे छुआ नहीं । और मैं पार निकल आया। अब बतायें आप ही, मेरा क्या दोष ?'
'और तुम्हारी माताएं ?'
'तात की आज्ञा थी, अन्तःपुरों में आग लगा दो । मैंने लगा दी । फिर मैं ही कूद पड़ा उसमें । आपका आदेश होने से पूर्व ही, मैंने उसका पालन कर दिया ! फिर देखता कौन, कि कौन जल कर भस्म हुआ और कोन नहीं ?'
'तो तुम्हारी माताएँ ? कहाँ हैं वे ?' .
'कहीं तो होंगी ही वे महासतियाँ ! उन्हें कौन-सी आग जला कर भस्म कर सकती है ?'
'अभयकुमार, पहेलियाँ न बुझाओ। जो हो, सच-सच कहो। यदि तुम्हारी माएँ जल गई, तो तुम्हें भी इसी ववत जिन्दा जलवा दूंगा।'
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