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________________ १८५ कर भस्म कर दिया होगा ? हा हन्त, अनर्थ अनर्थ अनर्थ ! अहंन्त, अर्हन्त, रक्षा करें, रक्षा करें । लाज रखें, बाण करें नाथ, वैतरणी भी मुझे डूबने को ठौर न देगी ।...' और राजा मानो काल के चक्र नेमि को झंझोड़ता-उखाड़ता हुआ, अवकाश के बाहर अपना रथ फेंक रहा था। O श्रेणिक लौट कर सीधा अपने निजी राज-कक्ष में गया । तत्काल अभयकुमार को तलब किया गया। "अविलम्ब उपस्थित हो कर अभय राजकुमार पिता के समक्ष दण्डवत् में नत हो गया । 'क्या तुमने सच ही मेरी आज्ञा का पालन किया, अभय ?' 'मगधनाथ श्रेणिक की आज्ञा तो तत्त्व तक नहीं टाल सकते । फिर मेरी क्या बिसात, बापू !' 'नराधम, पिशाच, मातृ-हत्यारे, मेरे सामने से हट जाओ ! अपनी मांओं को जला कर भस्म कर दिया तुमने ?' राजा को मूर्छा के हिलोरे आने लगे। लेकिन उधर अभय अपनी चंचल हंसी को दबा कर, गंभीर मुद्रा में बोला : _ 'देख आऊँ, तात, भस्म हो गई कि नहीं ?' .. ___निर्लज्ज, ऐसा महापातक करके भी परिहास कर रहा है रे ? तू स्वयं ही क्यों न उस अग्नि में कद कर भस्म हो गया ?'. 'कूद पड़ा था, बापू, लेकिन पता नहीं कैसे उन लपटों में भी मैं चलता रहा । तो उन ज्वालाओं ने मुझे छुआ नहीं । और मैं पार निकल आया। अब बतायें आप ही, मेरा क्या दोष ?' 'और तुम्हारी माताएं ?' 'तात की आज्ञा थी, अन्तःपुरों में आग लगा दो । मैंने लगा दी । फिर मैं ही कूद पड़ा उसमें । आपका आदेश होने से पूर्व ही, मैंने उसका पालन कर दिया ! फिर देखता कौन, कि कौन जल कर भस्म हुआ और कोन नहीं ?' 'तो तुम्हारी माताएँ ? कहाँ हैं वे ?' . 'कहीं तो होंगी ही वे महासतियाँ ! उन्हें कौन-सी आग जला कर भस्म कर सकती है ?' 'अभयकुमार, पहेलियाँ न बुझाओ। जो हो, सच-सच कहो। यदि तुम्हारी माएँ जल गई, तो तुम्हें भी इसी ववत जिन्दा जलवा दूंगा।' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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