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________________ १८४ में परिणमन कर सके, और चेलना तुझ में परिणमन कर सके । ऐसा विभावरूप परिणमन जब होता है, तो उसका एक मात्र परिणाम होता है, दुःख, वियोग, विषाद ।' राजा को लगा कि उसके अवचेतन की कई अंधेरी खोहें उजाले से भर रही हैं । कई फन्दे, जाले, ग्रंथिजाल कट रहे हैं। राजा प्रभु को इकटक इकसार ग्रहण करता रहा । __ 'और सुनो श्रेणिक, यदि आहती चेलना पर-पुरुषगामी है, तो अर्हन्त महावीर पर-स्त्रीगामी है ! चेलना के अंगांग में महावीर का स्पर्श-सुख पाने वाले राजा, सुन, तू अर्हत् में कलंक देख रहा है ?...' ___ क्षमा करें नाथ, क्षमा दें मुझ अज्ञानी को, मुझे ऐसे जघन्य अपराध के नरक में न डालें ।' 'अपना नरक तो तु आप ही रच रहा है, श्रेणिकराज ! महासत्ता ने तुझे अमृत-कुम्भ दिया, और तूने उसे माटी में डाल दिया !' 'प्रभु, मैं निःशंक हुआ। मैं आपे में आ गया । मुझे और प्रतिबुद्ध करें।' ____ 'लिंगातीत है आहती चेलना। फिर भी उसने अपनी पर्याय से तुम्हें सारभूत नारीत्व का सुख दिया । महाभाग हो तुम, कि वह जन्मजात योगिनी, तुम्हारी आत्म-सहचरी और भोग्या रमणी एक साथ हो कर रही । भोग में ही उसने तुम्हें योग का सुख दिया । धर्म और काम दोनों में उसने तुम्हें सार्थक किया । उस आकाशिनी ने तुम्हारा बाहुबन्ध स्वीकारा । अपने आश्लेष में तुम्हारी देह को ही गला कर, उसने तुम्हें आत्म-रमण का सुख अनुभव करा दिया । असम्भव को उसने सम्भव बनाया तुम्हारे लिये। फिर भी तुम चेलना को पहचान न सके, राजन् ! इसी से तो तुम उसे साँसों से समीपतर लेकर भी पा न सके । बिछुड़े ही रह गये । ममत्व जब तक है, तब तक वियोग है ही । समत्व में ही अविच्छेद्य मिलन सम्भव 'बुज्झह बुज्झह श्रेणिकराज ! अपने में एकाकी, अनालम्ब रह राजन् । तो चेलना और सारा जगत् निमिष मात्र में तेरा हो रहेगा । काल से परे, सब कुछ सदा तेरा !' राजा को लिंग-छेद और योनि-छेद का एक बुनियादी आघात अनुभव हुआ। और एक अनिर्वच शान्ति में वह विश्रब्ध होता चला गया । __ आह्लादित भाव से रथ पर चढ़ते ही, राजा को याद आया : 'ओह, क्या सच ही अभय राजकुमार ने अपनी माँओं के सारे अन्तःपुरों को जला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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