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- राजा बड़ी भोर ही चुपचाप उठ बैठा। जल्दी से तैयार हो कर गोपन राज-कक्ष में उपस्थित हुआ। उसने तत्काल अभय, राजकुमार को बुलवा भेजा। बात की बात में अभय आ उपस्थित हुए। राजा का पुराना सत्ता-दर्पित सम्राटत्व लौट आया। वह तड़क कर बोला :
_ 'आयुष्मान अभय, कान खोल कर सुनो। मेरे अन्तःपुरों में दुराचार फैल रहा है । नारी-लोक की यही अन्तिम नियति है । इस रात वह घटस्फोट हो गया । ..अभय, तुरन्त मेरे अन्तःपुर के सारे प्रासादों में आग लगवा दो । देखो कि वे बेनिशान जल कर राख हो जायें ।'
'तात की आज्ञा अटल है । वह पूरी होगी ही !' कह कर अभय राजकुमार एक अजीब हास्य-कौतूहल की मुद्रा में एक टक राजा को देखता रह गया । अपने भुवनजयी सम्राट-पिता का यह बालक रूप उसके लिये नया तो नहीं था।
'अविलम्ब आज्ञा का पालन हो, अभय ! हम अभी बाहर जा रहे हैं।'
कह कर राजा आँधी की तरह झपटता हुआ, राज-कक्ष से बाहर हो गया । व्युत्पन्न-मति अभय को युक्ति सूझने में देर न लगी। वह सीधे वहाँ से निकल कर अन्तःपुर के पश्चिमी पार्श्व में गया । वहाँ हस्तिशाला के चौगान में जो बहुत सारी जीर्ण कुटियाएँ मुद्दत से वीरान पड़ी थीं, उनमें तुरन्त हस्तिपाल से आग लगवा दी । पल मात्र में घास-फूस भभक उठा। लपटों और धुएं से सारे अन्तःपुर आच्छन्न हो कर खलभला उठे । गवाक्षों से भय की चीखें सुनाई पड़ीं : आग: आग आग । हंगामा मच गया ।
चेलना जब ब्राह्मी वेला में आदतन जागी, तो महाराज को शैया में न पा कर सोच में पड़ गयी । ... ऐसा तो कभी होता नहीं, कि शैयात्याग से पूर्व ये मेरी गोद में सर रखे बिना उठे हों । मेरे स्पर्श के बिना तो जगत् और समय इनके लिये शुरू नहीं होता।' कि सहसा ही आगआग' की चीख-पुकार सुन कर वह भी अपने एक-स्तम्भ प्रासाद की सब से ऊँची बुर्ज पर आयी । उसने देखा कि जीर्ण झोंपड़-पट्टी धाँय-धाँय सुलग रही है । और उन लपटों के पार, अन्तःपुरों की चीखों के पार, बाहर के राजमार्ग पर महाराज स्वयम् अपना रथः वायु वेग से फेंकते हुए, दूर के मोड़ पर ओझल हो गये । '...मुझ से कहे बिना आज ये कहाँ पलायन कर गये ! प्रभु से मिलने के बाद बिना चेलना के ये कहीं भी तो नहीं जाते । और आज जगाये बिना, कहे बिना ही चले गये ? कहाँ गये होंगे...?' चेलना बुर्ज-गवाक्ष पर निश्चल उदासीन खड़ी शून्य ताकती रह गई ।
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