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बाहर बछियों-सी वेधक ठण्डी हवाएं चल रही हैं। और कक्ष के भीतर हंसगर्भ और ज्योतिरस रत्नों से जटित विशाल शैया में श्रेणिक और चेलना संयुक्त सोये हैं। राजा देवी की भुजलता का सिरहाना बना कर, उसके बाहुमूल में दुबके हैं, और उसके वक्ष पर बांह ढाले लेटे हैं। दोनों चप हैं, फिर भी राजा को अभी नींद नहीं आई है, तो रानी भी उसके साथ जाग रही है। उसने स्वामी की चाह को चीन्हा। तो स्तन को करवट दे कर उन्हें गाढ़ आलिंगन में बांध लिया। राजा को वहाँ तुरन्त नींद आ गयी। चेलना का मन बाहर की शीत हवाओं में उड़ता हुआ, पिछले सायाह्न के यात्रा-पथ में भटक रहा है। और जाने कब उसे भी नींद आ गई।
गहरी नींद में भी चेलना कहीं संचेतन थी। केशर-भीने ऊष्म रेशमी आस्तरण में मानो वह विश्रान्त नहीं हो पा रही थी। सो उस बेचैनी में उसका एक हाथ आच्छादन से बाहर निकल आया। आलिंगन अनायास छूट गया। बिच्छू के कांटे जैसी दुःसह शीत ने रानी के हाथ को छु दिया। चेलना की नींद औचक ही उड़ गयी। ठण्ड की आक्रान्ति से सीत्कार करते हुए उसने, फिर अपना हाय' आच्छादन में सिकोड़ लिया और राजा के हृदय में मन की तरह स्थापित कर दिया।
ठीक तभी उसे याद हो आये वे मुनीश्वर, जो राह में नदी तीर के ठूठ-वन में, निर्वसन निरे ढूंट-से ही खड़े थे। अब भी तो वे वहाँ वैसे ही खड़े होंगे। हिमानी और शीत के झकोरों के बीच वैसे ही अकम्प। प्रतिमासन में कायोत्सर्गलीन । अपने केशर-कस्तूरी बसे आस्तरण और प्रिय के आलिंगन की ऊष्मा में भी देवी विमूर उठीं। भान न रहा, और बरबस ही उनके मुख से अस्फुट-सा उच्चरित हुआ : 'हाय, उनका क्या हुआ होगा? वे कहां, किस अवस्था में होंगे !' .
और इसके साथ ही चेलना किसी गहरी योग-तन्द्रा में लीन हो गयी। लेकिन रानी के उक्त अस्फुट वचन से राजा की नींद उचट गयी थी। उसने वह वाक्य सुन लिया था। उसके हृदय में वह वचन संशय का तीर बन कर चुभ गया। मेरे बाहुपाश में लेटी मेरी अभिन्न चेलना को यह किसकी चिन्ता व्याप गयी? मेरे सिवाय भी उसका कोई ऐसा गाढ़ प्रियजन है?' 'हाय, उनका क्या हुआ होगा?' “यह 'उनका' सर्वनाम राजा के हृदय में वृष्चिक की तरह दश करता चला गया। "अवश्य ही यह किसी पर पुरुष में अनुरक्त है। राजा की नसों में ईर्ष्या के हरे विष की लहरें दौड़ने लगीं। उसमें प्रतीति जागी : स्त्री में प्रीति रखने वाला कोई भी संचेतन पुरुष ईर्ष्या की नागिन से नहीं बच सकता। राजा शेष रात जागता ही पड़ा रह गया। उसका मन-मस्तिष्क इतना उलझ गया, कि सारा जगत् उसे असुझ होता-सा लगा। और रानी निश्चिन्त गाढ़ निद्रा में मग्न सोई थी।
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