________________
१८०
बेबस थरथराते बालकों की दन्त - वीणा में, अपना सुखद ऊष्म शिशिर-कक्ष याद हो आया । उसे लगा कि उस गर्म मुलायम केशर - बसी सेज का सुख कितना झूठा, अनिश्चित है ? यह नग्न थर्राता दीन बालक श्रेणिक भी तो हो ही सकता है । और श्रेणिक वह नहीं है, न होगा कभी, या न रहा कभी, इसका लेखा किसके पास है ?
इस सूखे सफेद वीराने में, कहीं-कहीं चाँवलों के खेत अवश्य लहकते दीखते हैं। या फिर दूर-दूर तक फैले कई रंगों की घाँसों के वन हैं। उनमें यहाँवहाँ चमकते जलाशयों का पानी जम गया है। तो वे बर्फ के सफेद रम्य आँगन-से दीखते हैं । राजा और रानी महाशीत के इस हिमानी प्रसार में अपनी इयत्ता भूल गये हैं । एक अजीब उदासी से उनके मन उन्मन हो गये हैं । सायाह्न के घिरते सायों में कोहरा बढ़ रहा है । ठूंठों के वन उसमें अन्तर्धान होते जा रहे हैं । यह अवसान तो नहीं, ओझल होना है । और मनुष्य तो अपनी पतझड़ में ऐसा ओझल होता है, कि फिर कभी दिखायी नहीं पड़ता । पर्याय की इस अवसान - लीला से राजा बहुत अवसाद और विषाद में खो रहा । और रानी अपने ही से बिछुड़ कर, किसी नये मिलन के तट पर उतरती रही ।
: तभी एक स्थान पर, नदी-तीर की एक कोहरे में धुंधलाती वनानी में, कोई दिगम्बर योगिराट् कायोत्सर्ग में लीन खड़े दीखे । झड़े खड़ों के बीच मानो एक और हिम- श्वेत स्थाणु रूँखड़ा । तुरन्त रथ रोका गया । महाराज और देवी रथ से उतर कर शीतजयी जिन पुरुष के वन्दन को गये । त्रिवार वन्दन कर, तीन प्रदक्षिणा दे, वे उस नग्न हिमवन्त को ताकते रह गये । शैलेशी दशा । उस दर्शन में रानी को जहाँ एक परम अवस्था का आह्लाद अनुभव हुआ, वहीं उसके भीतर बैठी नारी - माँ पसीज गयी । हिम-वसन श्रमण के उस शीत परिषह को देखना उसे असह्य हो गया । वह आँखें मूंद कर केवल उनके प्रति समर्पित हो रही । श्रेणिक स्तम्भित खड़ा देखता रह गया । पास ही खड़ी प्राणेश्वरी के अंगों की ऊष्मा में लुप्त हो जाने के सिवाय, उसे बचने का कोई उपाय न दीखा । ...
चेलना के शिशिर - कक्ष में माणिक्य और लोहिताक्ष रत्नों की रातुल प्रभा झड़ रही है । सारा कक्ष केशर कस्तूरी और अम्बर से बसा हुआ है अग्निकान्त मणि के फानूसों में केशर के इत्र के मद्दिम प्रदीप जल रहे हैं । अगुरु- कपूर की धूप से सारा वासर-कक्ष सुवासित है। दीवार तले बने आ में चन्दन काष्ठ की अग्नि सुगन्धित तपन बिखेर रही है । द्वार - वातायन सब मुद्रित हैं। केवल दीवारों के सिरों पर जालीदार उजालदान खुले हैं, जिनसे प्राणवायु आती रहती है ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org