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________________ अगले दिन सूर्योदय के साथ ही सारी वैशाली में जंगली आग की तरह यह सम्वाद फैल गया, कि कठोर कामजयी महावीर, वैशाली के जगत्-विख्यात केलि-कानन 'महावन उद्यान' में समवसरित हुए हैं। मदिरालय, द्यूतालय, वेश्यालय, देवालय से लगा कर भद्र जनों के लोकालय तक में एक ही अपवाद फैला हुआ है। जिस महावीर की वीतरागता लोकालोक में अतुल्य मानी जाती है, वह कुलिश-कठोर महावीर वैशाली के विश्व-विश्रुत प्रमदवन की रागरंग से आलोड़ित वीथियों में विहार कर रहा है ! वैशाली का तारुण्य इस घटना से सन्त्रस्त और भयभीत हो उठा। क्या महावीर ने हमारी प्रणय-केलि के प्रमदवन को हम से छीन लेना चाहा है ? क्या वे हमारे युवा मन के मदन की विदग्ध और मादिनी लीला का मूलोच्छेद करने आये हैं ? ऐसे महावीर हमारे क्रीड़ाकुल तन और मन के भगवान् कैसे हो सकते हैं ? प्राण मात्र की सब से बड़ी ह्लादिनी शक्ति है काम । महाकाल शंकर ने परापूर्व काल में जब क्रुद्ध हो कर काम का दहन कर दिया था, तो सारी सृष्टि उदास हो गयी थी। शाश्वत संसार की लीला रुक गयी थी। काल की गति मछित हो गयी थी। तब जगत की धात्री पार्वती ने दारुण तपस्या करके, फिर से शंकर को आह्लादित और प्रसन्न किया था। जगज्जननी ने दुर्द्धर्ष विरागी जगदीश्वर शंकर के मनातीत चैतन्य को फिर अपनी मोहिनी से अवश कर दिया था। तब फिर से कण-कण में कामदेव उन्मेषित हो कर जाग उठे। शंकर की गोद में शंकरी उत्संगित हुई, और सकल चराचर में फिर से प्राण की धारा प्रवाहित हो उठी। जगत् उस महाप्रसाद से प्रफुल्लित और लीलायमान हो उठा। जीवन की धारा फिर अस्खलित वेग से बहने लगी। मदन-दहन महेश्वर ने जिस काम के बीज को ही भस्मीभूत कर दिया था, उससे आखिर वे धूर्जटि स्वयम् भी हार गये। क्या उसी काम का मूलोत्पाटन करने आये हैं तीर्थंकर महावीर? तो उन्हें एक दिन निश्चय ही उससे हार जाना पड़ेगा। और इस भावधारा के साथ ही वैशाली के युवजनों और युवतियों का काम पूर्णिमा के समुद्र के समान सम्पूर्ण वेग से उद्वेलित होने लगा। "ओह, यह कैसा परस्पर विरोधी चमत्कार है ? । ___ और महावन उद्यान के समवसरण में अनाहत ओंकार ध्वनि के साथ, श्रीभगवान् के प्रभा-मण्डल में से लोहित, पीत, कृष्ण, नील और श्वेत ज्योति से स्फुरित 'ॐ' के असंख्य विग्रह ग्रह-नक्षत्रों की तरह प्रवाहित होने लगे और हठात् वह अनहद ओंकारनाद शब्दायमान हुआ : ___ 'सत्य-प्रकाश सत्य-प्रकाश, सत्यानाश सत्यानाश, यही महावीर है, यही महेश्वर है। महेश्वर शंकर ने मदन-दहन किया था, सृष्टि में कुण्ठित हो गये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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