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'आदेश तो आर्य गोशालक का ही पूरा होगा। इसी कक्ष के मध्य भाग में, जहाँ वे लेटे हैं-वहीं श्रावस्ती चित्रित कर के, स्वामी के निदेशानुसार सब क्रिया उस चित्र पर कर दी जाये !' मृत्तिला का गला भर आया।
_ 'उनके शव को घसीटा जाये, उन पर थंका जाये ?' एक अन्य गणधर ने पूछा।
'अच्छिन्दक, पूछ कर उनका और मेरा अपमान क्यों करते हो? पहले शीघ्र उनके आदेश का पालन करो, फिर मैं कहूंगी।'
कह कर नग्न शव को ठीक माटी के सिपुर्द कर, मृत्तिला कुटीर से बाहर हो गयी। तब शिष्यों ने श्रावस्ती का मान-चित्र रच कर, उस पर वह अपमान-समारोह निर्वेद चित्त से सम्पन्न कर दिया, जिसका निर्देशन गोशालक ने दिया था। वह समाप्त कर वे देवी कुम्भकारिन की प्रतीक्षा में चुपचाप खड़े रहे। तभी सहसा देवी प्रकट हुईं। स्वयम् ही भर आते गले से आदेश दिया : ___ 'दिशाचरो, मृदभाण्डों की एक विशाल शिविका निर्मित कर, उस पर सात नदियों की माटी बिछा कर, सप्तसिन्ध के जल छिड़क कर, उस माटी की सेज पर आर्य को लिटाओ। ऋतु के श्रेष्ठ सुगन्धी फुल-पल्लव, लता-वनस्पति से उन्हें छा दो। और हालाहला कुम्भारिन के सारे रत्न-सुवर्ण अलंकार उनके चरणों पर निछावर कर दो। उसके समस्त वैभव के साथ उनकी शोभायात्रा निकाली जाये। एक सहस्र पुरुष उनकी शिविका का वहन करें। श्रावस्ती की सभी राज-रथ्याओं पर से उनके महायान का यह समारोह गुजारा जाये।
और दिशाचरो, आघोषणा करते चलो, उनके विमान के सामने चलते हुए : ___विप्लवी महावीर के विद्रोही अग्नि-पुत्र आर्य मक्खलि गोशालक देवलोकगमन कर रहे हैं। आकाश-पुरुष महावीर को, मृत्तिका-पुत्र गोशाल ने अपनी माटी में समोने का एक अपूर्व विक्रम किया। तो महावीर भी उनकी माटी में खेलने को विवश हुए। इसी से इतिहास और शाश्वती में, महावीर के मृत्तिका-पुत्र आर्य मक्खलि गोशाल जयवन्त हो जयवन्त होंजयवन्त हों !'
'उसके अनन्तर, देवि ? आर्य का दाह संस्कार?
'नहीं, उनकी देह का दहन नहीं किया जायेगा। देह के ज्योतिर्धर की देह अक्षुण्ण ही रहेगी। जिस माटी में से, जैसे जातरूप वे आये थे, वैसे ही उसी माटी के आँचल में वे फिर लौट जायेंगे। इसी कक्ष के ठीक आभोग भाग में जहाँ वे अभी लेटे हैं, वहीं उनकी देह को समाधिस्थ कर दिया . जाये। उनकी समाधि-शिला पर अंकित होगा : आद्या मृत्तिका के पुत्र और
प्रीतम, मिट्टी की चेतना को वाणी देने वाले, निरंजन महावीर के वाम-पुत्र - मक्खलि गोशाल--यहां समाधिस्थ बिराजमान हैं।'
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