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मातवीं रात्रि है ? ...'जब जब मुझे काल काल महाप्रयाण महापरिनिर्वाण.. मैं मैं हूँ चरम तीर्थंकर मक्खलि गोशाल । 'आओ, आओ मेरी प्रज्ञा-पारमिता हालाहला 'आओ मेरे दिशाचरो। अर्हत् जिनेन्द्र परिनिर्वाण के तट पर खड़े हैं..।' ... आसपास सारा शिघ्य-मण्डल एकत्र हो गया। हालाहला की गोद में गोशालक का माथा अवश ढलका है। उसने टूटती साँसों के साथ आदेश दिया : 'देखो, जब मैं काल-धर्म को प्राप्त करूँ, तो सुगन्धित गन्धोदक से मेरे शव को नहलाना, गोशीर्ष चन्दन का मेरे शरीर पर विलेपन करना, महामूल्य हंसदुकूल का साटिक-पाटिक मुझे धारण कराना, रत्न-फूलों के अलंकारों से मुझे विभूषित करना, और श्रावस्ती की राज-रथ्या पर मेरी शोभा यात्रा निकालते हुए उद्घोष करना : आदीश्वर आदिनाथ, मंखपुत्र भगवान् मक्खलि गोशालक, अवसर्पिणी के चरम तीर्थंकर, अपने आगामी युगतीर्थ का प्रवर्तन करने के लिये महाप्रस्थान कर रहे हैं। भगवान् गोशालक जयवन्त हों जयवन्त हों... जयवन्त हों। । हालाहला और शिष्यों ने उनके आदेश को जयध्वनि के साथ सर पर चढ़ाया। आश्वासन दिया कि--भन्ते भगवान के योग्य ही सारा आयोजन होगा। मृत्तिका हालाहला ने अपने सेवकों को इंगित कर दिया, कि सारी व्यवस्था तत्काल की जाये ।
बढ़ती रात के साथ गोशालक का दाह-ज्वर बढ़ता ही चला गया। सन्निपात के अन्ध भंवरों में उसकी चेतना टक्करें खा रही थी । उसका जन्मान्तरों का अंधियारा अवचेतन पूरा उसके भीतर खुल पड़ा था। उसकी फटती वज्र तमस् तहों में से अन्तश्चेतना के जल औचक ही झाँक कर, चमक कर, उसके कर्ण-कुहरों में मर्मराते-से लगे। "और सहसा ही उस मुमूर्षा को बींध कर, महावीर की वे सद्य विकसित कमल जैसी आँखें उसे याद हो आईं। ."उनकी वह मौन प्रीति । उनके साथ मुश्कों में आलिंगन-बद्ध होकर यातनाएँ झेलना। 'हायवे प्रभु मुझे कितना प्यार करते थे। कितना... ! उजागर है वह प्यार इस क्षण। मैं उन्हें समझ कर भी न समझ पायां । मेरे मंख-रक्त का चिरकालिक दलन, और मेरी आत्महीनता आड़े आ गयी । उनकी चिरसंगी वीतराग प्रीति मेरी आँखों से ओझल हो गयी ! ...' अनुताप विकल हो कर वह रो आया। आर्त-कातर रुंधते स्वर में बोला :
'' 'आत्मन् हालाहले, उन प्रभु के सिवा तो जगत् में किसी ने मुझे प्यार नहीं किया था। मुझ अनाथ को केवल उन्होंने ही सनाथ किया था। मेरी पल-पल की पीड़ा में वे संगी होकर रहे। पर बोले कभी नहीं। मैंने उस अगाध मौन प्यार को अवहेला समझा । मैं उन्हें छोड़ आया । तो उन्होंने मुझे तुम्हारे पास भेज कर, तुम्हें सौंप दिया । तुम्हारे द्वारा उन्होंने ही अपनी प्रीति मुझे दी।...
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