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शत-सहस्र नर-नारी वृन्द उस रसोत्सव में मोह - मूच्छित हो कर नाचगन करने लगे । चरम तीर्थंकर गोशालदेव की जयकारों से सारा आम्रकानन, और सारे राजमार्ग गुंजायमान होने लगे ।
श्रावस्ती की प्रजाओं का रक्त एक विचित्र मुक्ति के भाव से आन्दोलित हो उठा। उन्हें लगा कि सच ही, यही तो चरम तीर्थंकर है। यही तो परम त्राता और मुक्तिदाता है । क्योंकि उन्हें सचोट अनुभव हुआ, कि अनादिकाल से उनके रक्त में पड़ी वर्जना, बाधा, पाप, भय और विधि - निषेधों की ग्रंथियाँ आज औचक ही किसी ने खोल दी हैं । उनकी साँस जैसे पहली बार मुक्त और निर्ग्रन्थ हुई है ।
पहले ही प्रकटीकरण में चरम तीर्थंकर मक्खलि गोशाल की कीर्ति दिगन्त चूमती दिखाई पड़ी ।
छट्ठ तप के छह महीनों में, गोशालक ने केवल तेजोलेश्या ही सिद्ध नहीं की थी । प्रभु होने की महत्वाकांक्षा और हालाहला के समर्पण का बल पाकर, उसने अपनी सारी इन्द्रियों का एकाग्र निग्रह और संयम भी किया -था । फलतः उसकी प्रत्येक इन्द्रिय कई गुनी अधिक सतेज और प्रबल हो गयी थी। हर इन्द्रिय की क्रिया अपनी सीमा लाँघ कर, विक्रिया शक्ति से सम्पन्न हो उठी थी। अनजाने और अप्रत्याशित ही उसे दूर-दर्शन, दूर-श्रवण, दूसरे का मनोगत जान लेना आदि कई ऋद्धि-सिद्धि अनायास प्राप्त हो गयी थीं। अपने ज्ञान के इस चमत्कारिक उत्कर्ष को प्रकट देख कर उसे भ्रान्ति हो गयी थी कि वह सर्वज्ञ हो गया है । वह महावीर का समकक्षी, और उनका प्रतिपक्षी होने में समर्थ हो गया है । उसे अगले क्षण होने वाली घटना या आने वाले व्यक्ति का पूर्वाभास हो जाता था । आगन्तुक के मन को पढ़ लेना उसे सहज हो गया था। महावीर भी तो यही करते हैं !
''उन्हीं दिनों श्रावस्ती में छह दिशाचर पार्श्वापत्य श्रमण विहार कर रहे थे। ज्ञान, कलन्द, कर्णिकार, अच्छिन्द, अग्नि वैशम्पायन और गोमायुपुत्र अर्जुन | जिन-मार्गी श्रमणों की कठोर व्रत-चर्या का पालन करने में असमर्थ हो कर वे शिथिलाचारी, और स्वच्छन्दाचारी हो गये थे । अष्टांग निमित्तज्ञान, मंत्र-तंत्र, ज्योतिष, भविष्य कथन आदि कई विद्याएँ उन्हें सिद्ध हो गयी थीं । वे ऋद्धि-सिद्धि सम्पन्न थे, और उसी के बल वे मनमाना स्वच्छन्द जीवन बिताने लगे थे। हालाहला के आम्र-कुंज में उन्होंने गोशालक की प्रथम देशना सुनी थी। उसमें अपनी उच्छृंखल विषय - वृत्तियों का प्रत्यायक समर्थन पा कर, उन्होंने मन ही मन गोशालक को अपना गुरु मान लिया था । उन्हें मुक्तिमार्ग का एक नया और स्वानुकूल मंत्र - दर्शन प्राप्त हो गया था ।
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