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सह सका। मैंने बार-बार अट्टहास कर उनके अनाचार पर वाक् प्रहार किये । उस तीखी हवाओं वाली शीत रात्रि में बार-बार उन उपासकों ने मुझे उठा कर बाहर के शीत में फेंक दिया । दन्तवीणा बजाता, दाँत किटकिटाता, मैं बाहर विलाप और प्रलाप एक साथ करता रहा। बार-बार किसी स्त्री को मुझ पर दया आयी, मुझे भीतर लिया गया। मैंने फिर वही अट्टहास-प्रहार किया, फिर वही दुर्गत। फिर एक स्त्री की दया । फिर उद्धार । सच, स्त्री कितनी बड़ी चीज़ है ! क्या मेरे लिये कहीं कोई स्त्री इस पृथ्वी पर नहीं जन्मी ? मेरा तो सारा भीतर-बाहर एक और नग्न था । मेरे काम-क्रोध-लोभ सब नंगे थे। मुझे क्या डर। मैं सच्चा निर्ग्रथ था । फिर भी मैं मार खाता रहा, और मौन महावीर की जय-जयकार होती रही ।
श्रावस्ती में स्वामी ने आगाही की, कि मुझे भिक्षा में उस दिन नरमांस की खीर मिलेगी । मेरी सारी सावधानी के बावजूद पितृदत्त गृहपति की भार्या ने एक तोटका करने के लिये अपने मृतपुत्र के शव की खीर मुझे खिला दी। बाद को वमन होने पर पता चला, कि नरमांस के आहार की मेरी वह नियति टल न सकी । कलंबुक ग्राम में शैलपालक काल - हस्ति के यहाँ हम दोनों को एक साथ मुश्कों में बाँध कर, सर के बल आँखल में कूटने को डाला गया। लेकिन मूसलों के वार हवा खाँडते रहे। हमें छू न सके।'' लगा, सच ही मेरे गुरु महावीर में ज़रूर कोई प्रताप है । अघात्य है यह आर्य । लेकिन मुझे तो मार खानी ही पड़ती है । और यह आर्य मुझे बचाता तक नहीं । लाढ़, वज्र, शुभ्र आदि नरभक्षी म्लेच्छों के देशों में हम विचरे । हम पर कुत्ते और सांड़ छोड़े गये । हमारे मांस नोचे गये । लहूलुहान मौनमूक हम दोनों एकत्र यातना सहते रहे । श्रमण महावीर इन सारे उपसर्गों को कर्म-निर्जरा और मोक्ष की अनिवार्य परीक्षाएँ मान तितिक्षापूर्वक सब सहते थे । मैं भी आस लगाये रहा, कि इस आर्य के साथ त्रास झेलते शायद किसी दिन मुझे भी मोक्ष मिल जाये । लेकिन अन्तहीन था उन कष्टों, प्रहारों, यंत्रणाओं का वह क्रम । आखिर कब तक ? लेकिन यह तो बराबर ही देखा, कि अटल को टाला न जा सका। कोई नियतिचक्र अनिर्वार चल रहा है। हम उसमें पिसने को विवश हैं । महावीर भी कहाँ उससे बच पाते थे ?
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जाने कितने ही प्रसंग हैं— याद आते ही चले जाते हैं । महावीर की इस वीतरागता से ऊब कर एक बार यातना सहते हुए थक कर, मैं जम्बूखण्ड कूपिका से विहार करते हुए, प्रभु से विदा ले राजगृही के मार्ग पर चल पड़ा। प्रभु वैशाली की ओर । घनघोर अरण्य में राह भूल कर चोरों के अड्डे में फँस गया । उन्होंने मुझे मार-मार कर धूलिसात् कर दिया, कि अवश्य मैं कोई नग्न भेदिया हूँ, और वे मुझे पीट कर किसी राजा या श्रेष्ठी
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