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सर्प और शूलपाणि यक्ष जैसे पीड़कों को भी उन्होंने अपने प्यार की गोद में शरण दी थी । जाने-अनजाने मैं उन्हीं की खोज में मारा-मारा फिरता रहा ।
...कि आज से छह वर्ष पूर्व, नालन्द की तन्तुवाय शाला के श्रमणागार में एकाएक उनसे भेंट हो गई। उनका वह दिव्य रूप देख कर मैं भोला भानभूला सा हो रहा । पिता से जो वाचिक काव्य-विद्या सीखी थी, उस में अनेक उपमा-उपमान, अलंकार, सुन्दर आकार-प्रकार की बातें सुनी थीं । ईश्वरों, देवों, गन्धर्वों के अलौकिक रूप-सौन्दर्य की काव्य-प्रसिद्धियाँ रटी थीं। लेकिन इस आर्य के सौन्दर्य के सामने वे सारे उपमा - उपमान फीके पड़ गये । कामदेव का कल्पित और सारभूत सौन्दर्य भी इसके आगे पानी भरता लगने लगा । मनुष्य की देह में क्या ऐसा भी रूप हो सकता है ?
मैंने उन स्वामी का त्रिवार वन्दन किया, और उनके चरणों में बैठ गया । मुग्ध - मूढ़ उन्हें निहारता ही रह गया। मुझे लगा, कि मेरी अनाथ आत्मा को उसका नाथ मिल गया । बस, अब इसी की शरण में रहना है, इसी का अनुगमन करना है, और कहीं भटकना नहीं है ।
मैं विभोर होकर उनसे विनती की, कि मैं उनका चित्र आँकना चाहता हूँ । भौंडे भद्रों के चेहरे आँकते - आँकते ऊब गया हूँ । चित्र में उतारने लायक़ सौन्दर्य तो पहली बार देखा है । उत्तर में उस आर्य ने केवल सद्य विकसित कमल-सी आँखों से मेरी ओर देखा । पर कोई उत्तर न दिया । मैंने अपनी तमाम काव्य-विद्या को चुका कर उसका स्तुतिगान किया । पर वह श्रमण अप्रभावित, अविचल पाषाण हो रहा । बहुत निहोरा किया कि उसकी कुछ सेवा करूँ । पर उसने कोई प्रतिसाद न दिया ।
श्रमण की यह उदासीनता और भावहीनता देख, मेरा आर्त्त - रुद्र मन रोष और विद्रोह से भर आया । "आख़िर तो वही अभिजात भद्र राजवंशी है न ? वैशाली का देवांशी राजपुत्र : यही तो इसकी काव्य-प्रसिद्धि सुनी है । घृत-नवनीत, मलाई मेवा से सुपोषित चिकना चेहरा, हृष्ट-पुष्ट शरीर । राजमहल की मुलायम शैया में लालित - पालित सुकुमार काया । उसी से तो इतना चिकना, सुन्दर हो गया है यह आर्य । मैं मूर्ख भावावेश में आ कर इसमें दिव्य सौन्दर्य देखने लगा । इसमें तो कोई भाव नहीं, संवेदन नहीं, कोमलता नहीं, मेरा दर्द तो इसे कहीं से भी छू न सका । निरा पत्थर है । बहुत बोलूँ, तो बस —— 'हूँ'——करके फिर मौन हो जाता है । मेरी ओर देखता तक नहीं ।" ऐसे ही दिन बीतते चले गये ।
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लेकिन प्रथम बार जब मैंने इस आर्य को सम्बोधित किया था, तब जिन विकच पद्म जैसी आँखों से मुझे इसने एक टक क्षण मात्र देखा था, वे
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