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'साधुवाद आर्य महावीर, आपने अपने विरोधी को पहचाना। निश्चय ही मैं उच्छेदवादी हूँ, नास्तिक हूँ, और आस्तिक महावीर के आस्तिकवाद का खण्डन करने आया हूँ।'
'आप महावीर के अस्तित्व को कृतार्थ करने आये हैं, आचार्य अजित। आप महावीर के होने को प्रमाणित करने आये हैं। आपका स्वागत है।' __'आप भ्रम में हैं, देवार्य । मैं महावीर की अस्ति का उच्छेद करने आया हूँ। मैं उनके होने को व्यर्थ करने आया हूँ।'
'उत्पाद, व्यय, ध्रुव की संयुति ही सत् है, अस्ति है, आर्य कम्बली। उसमें यदि उत्पाद है, तो उच्छेद भी है ही। उदय है कि प्रलय है। प्रलय है कि उदय है। अपेक्षा से अस्ति भी, अपेक्षा से नास्ति भी। लेकिन अन्ततः कुछ ध्रुव है, नित्य सत् है, कि यह संसार है, आप हैं, मैं हूँ। और हमारे बीच यह बातचीत सम्भव हो सकी है।'
'ध्रुव, सत्, अस्ति एक मरीचिका है, आर्य महावीर। एक भ्रम है, एक झूठा आश्वासन है, जो ब्रह्मवादी वेदान्तियों और आत्मवादी महावीर ने जगत् को दिया है। ताकि आत्मा, जन्मान्तर, पुण्य-पाप, लोक-परलोक, स्वर्ग-नरक का भय दिखा कर, अभिजात आर्य चिरकाल तक सर्वहारा अनार्यों और अन्त्यजों का शोषण करते चले जायें। मैं उच्छेदवादी अजित केश-कम्बली इस भ्रम का मूलोच्छेद करने आया हूँ।'
'ब्राह्मण-पुत्र आचार्य कम्बली, आप अपने जनेऊ का उच्छेद क्यों न कर सके ?'
'मैं जनेऊ नहीं, आर्य महावीर। उस पर मेरा ध्यान तक नहीं जाता। मैंने आर्यों की शिखायें उखाड़ कर, उनके मूल का ही उच्छेद कर दिया है। मैंने उनके केशों का कम्बल पहन कर, उन्हें पराभूत कर दिया। ब्राह्मण का वंशोच्छेद करने के लिये ही मैं ब्राह्मण-वंश में जन्मा हूँ।'
'आपने ब्राह्मण-वंश में जन्म लेना स्वीकारा, आपने उनकी शिखाओं को स्वीकारा, कटि पर धारण किया। वे भी कुछ हैं, आप भी कुछ हैं, यह प्रमाणित हुआ आपके अस्तित्व से भी, वचन से भी, व्यवहार से भी।' ____ आचार्य अजित कुछ असमंजस में पड़ गये। उन्हें उत्तर नहीं सूझ रहा था। कि तभी श्री भगवान् फिर बोले :
'आप उन्हें उखाड़ेंगे, तो वे आपको उखाड़ेंगे। इसका नहीं अन्त है, आचार्य अजित?'
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