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'यह एक विचित्र संयोग है, भगवन्, कि वर्तमान आर्यावर्त के ऐसे ही चार क्रान्तिकारी विचारक एक साथ इस क्षण प्रभु के सम्मुख श्रीमण्डप में उपस्थित हैं। आर्य पूर्ण काश्यप, आर्य अजित केश कम्बली, आर्य प्रक्रुध कात्यायन, आर्य संजय वेलट्ठिपुत्र। इन चारों ही ने सनातन आर्य धर्म की परम्परा का ध्वंस कर दिया है। आनन्दवादी वेद और ब्रह्मवादी उपनिषद्
का ज्ञान इन्हें सन्तुष्ट न कर सका। वर्तमान आर्य धार्मिकों में, विचार और ' आचार के बीच जो एक चौड़ी खाई पड़ गयी है, उसके पाखण्ड का इन्होंने घटस्फोट किया है। ये विचार को आचार में प्रकट देखने को बेचैन हैं। ये धर्म को जीवन में व्यक्त पाना चाहते हैं। इसके अभाव में अपनी पीड़ा के चरम पर पहुँच कर, ये धर्म मात्र के उच्छेद को सन्नद्ध हो उठे हैं।'
'प्रचेता हैं ये आचार्य, गौतम। ये जाग चुके हैं। सत्य की अग्नि से ये जाज्वल्यमान हैं। इन्होंने लीक को तोड़ा है, मिथ्यात्व का भंजन किया है, जड़ रूढ़ियों को ध्वस्त किया है। शास्ता को प्रिय हुए ये देवानुप्रिय सत्यवादी। हम इनका अभिवादन करते हैं। हम इनका क्या प्रिय कर सकते हैं, गौतम ?'
'ये प्रभु से वाद करना चाहते हैं।' 'अर्हत् वाद नहीं करते, संवाद करते हैं।' 'ये महावीर के वाद का खण्डन करने आये हैं, देवार्य ।'
'अर्हत् खण्डन नहीं करते, वे मण्डन करते हैं। वे अपने प्रतिपक्षी के पक्ष का भी, उसी की अपेक्षा विशेष से समर्थन करते हैं।'
'ये महावीर से असहमत होने आये हैं, भन्ते।' 'असहमत होने आये हैं, सहमत होने के लिये, गौतम !' 'ये महावीर को नकारने आये हैं, भगवन् ।' 'नकारने आये हैं, सकारने के लिये, गौतम । 'ना' कहने आये हैं, 'हाँ' कहने के लिये, गौतम !' 'ये महावीर के मत का विरोध करने आये हैं, भगवन ।'
'सर्वज्ञ किसी का विरोध नहीं करते, वे अविरोध-वाक् होते हैं। वे अपने विरोधी को भी स्वीकार कर, स्याद्वाद से उसके साथ सहकार करते हैं। वे विच्छेदक नहीं, संयोजक होते हैं।'
'विरोधों के बीच अविरोध और समन्वय कैसे सम्भव है, भगवन् ?'
'तू भी तो महावीर का विरोधी होकर आया था, आयुष्यमान् गौतम ! क्या महावीर ने तेरा विरोध किया? क्या महावीर ने तेरे वैदिक धर्म का खण्डन किया?'
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