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'तो भगवन्, क्या इतिहास अपने को दोहराता ही चला जायेगा? क्या वह कभी अपने को अतिक्रान्त नहीं करेगा ! क्या पृथ्वी पर मनुष्य की यही अन्तिम नियति है?'
'महावीर के युग-तीर्थ में सहस्राब्दों के पार देख रहा हूँ, एक शलाका पुरुष ! जो हिंसा और प्रतिहिंसा के इस दुश्चक्र को तोड़ देगा। महासत्ता में होने वाली उस अतिक्रान्ति की प्रतीक्षा करो, हे भव्यमान आर्यजनो !' ____एक गहरी आश्वस्तिदायक शान्ति व्याप गयी। उसमें से फिर सम्बोधन सुनाई पड़ा :
'मालाकार कन्या मल्लिका! मुझे तेरी महारानी नहीं, तेरी मालिन प्रिय है। मैं तेरे शूद्रत्व का वरण करने आया हूँ। आने वाले युगों में पृथ्वी पर भद्रों की नहीं, शूद्रों की प्रभुता देख रहा हूँ ! जो आज पीड़ित है, वही भविष्य में सच्चा प्रजापति हो कर उठेगा।'
प्रसेनजित् को अवलम्ब दिये खड़ी मल्लिका रो आई। वह गन्धकुटी के पाद में भूसात् हो गयी। और फिर उठकर रुद्ध कण्ठ से विनती कर उठी :
'मेरे लिये क्या आज्ञा है, देव ?' 'तुम महावीर की सती हुई, इस मुहूर्त में। तुम महावीर का भविष्य हो !' 'महाराज खड़े नहीं रह पा रहे, इन्हें कौन अवलम्बन देगा, भगवन् ?'
'उन्हें अपना अवलम्बन स्वयम् हो जाना पड़ेगा। आर्य प्रसेनजित्, चाहोगे तो, जहाँ भी जाओगे, महावीर सदा तुम्हारे साथ रहेगा।'
मुमुर्षु राजा ने आशान्वित होकर, आर्त स्वर को ऊंचा करके पूछा : 'इस सामने खड़ी मृत्यु में भी?'
'यह मृत्यु भी वही है। और इसके पार भी वही खड़ा है, तुम्हारा अनिर्वार और एकमेव भविष्य : महावीर !' ___और तुमुल जय-निनादों के बीच श्री भगवान् गन्धकुटी की सीढ़ियाँ उतरते दिखाई पड़े।
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