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के शतियों व्यापी ढंके अनाचारों का, यह उजागर और पूंजीभूत अवतार है। तुम्हारी प्रति-स्पर्धी और प्रतिशोधी बर्बर परम्परा का यह ज्वलन्त प्रमाण
और साक्षी है। तुम्हारे हिंसक, बलात्कारी, सड़े हुए राजवंशी रक्तों के सम्मिश्रण से जन्मा है, शाक्यों की दासी-पुत्री और कौशलेन्द्र की रानी वार्षभक्षत्रिया का बेटा यह विडूडभ । इसका सामना करो, राजा। तुम राजवंशियों के अधोगामी रक्त का यह ओजस्, तुम्हारी राजसत्ता मात्र का सत्यानाश है। इसे देख, प्रसेनजित् । यह इतिहास का अटल तर्क है !
प्रसेनजित् की आँखों में अँधेरा छा गया। उसके हाथ-पैर छुट गये। वह गिर जाने की अनी पर है। .
'निश्चल हो जा राजा, और अपनी नियति का सामना कर!' 'मैं कहाँ टिकूँ, मैं कोई नहीं रह गया? मैं कौन हूँ, मुझे नहीं मालूम ।' 'जो 'कोई नहीं रह गया, जो 'कुछ नहीं' हो गया, वही तू है, राजन् ।'
'मैं सचमुच 'कोई नहीं रह गया, भगवन् ? मैं कोशलेन्द्र प्रसेनजित्, मेरा राज्य, मेरा सिंहासन ? "मैं कोशलेश्वर प्रसेनजित् ?'
'वह तू नहीं रहा , वत्स । तेरा राज्य समाप्त हो गया। तू लौट कर आज अपने सिंहासन पर नहीं बैठ सकेगा। आँखें खोल कर इस विडूडभ को देख । इसके सर पर कोशल का राजमुकुट है। कोशल के सिंहासन पर इस वक़्त, तेरी नहीं, इसकी तलवार खड़ी है। इसका सामना कर, प्रसेनजित् । लौट कर अपने राज-द्वार पर तू राजा नहीं, बन्दी होगा!'
क्रोध से उत्तेजित हो कर राजा फूट पड़ा : 'मुझे कोई कैद नहीं कर सकता। मेरा सिंहासन कोई नहीं छीन सकता!' 'वह छिन चुका । यह नियति अटल है। इसका सामना कर।' 'मैं क्या करूँ, भन्ते कृपानाथ ? मेरा त्राण करें !' 'सामने खड़ी अपनी मौत को देख !' 'मौत ?..इससे मुझे बचाओ, तारनहार प्रभु ।' 'मौत से कोई बच और बचा नहीं सकता !' 'तो मेरा कोई तरणोपाय, भगवन् ?'
'अपनी आसन्न मृत्यु के सम्मुख निश्चल खड़ा हो जा । उसे साक्षात् कर । उसे स्वीकार कर । और तू उससे पार हो जायेगा।'
'यह मेरे वश का नहीं, भन्ते अर्हन्त ।' 'तो अपनी परवशता को भोग । उसका सामना कर।' 'मुझे कुछ नहीं दीख रहा, नाथ । मेरे सामने केवल अन्धकार है।'
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