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करते हैं। जो आचूड़ पृथ्वी का दोहन कर, तुम्हारे लिये तमाम भोग्य वस्तुसामग्री जुटाते हैं। ताकि अपने सार्थों और जलपोतों द्वारा उनका निर्यातव्यापार करके, तुम सारी धरती का धन अपने भाण्डारों में एकत्रित कर सको। उन वास्तुकारों, स्थपतियों और राज-मजूरों का अर्जन क्या, जो श्रेष्ठियों और राजाओं के आकाशगामी महल चुनने के लिये, बल्लियों के मचानों पर चढ़ कर, अधर आकाश में अपनी जान से खेलते हैं ? उन शिल्पियों
और कलाकारों का अर्जन क्या, जो अपने रक्त का इत्र निचोड़ कर, समर्थों के सौन्दर्य-स्वप्न और लालित्य-चेतना को परितृप्त करते हैं ? उन सबका अर्जन क्या ? उनके परिश्रम और पुरुषार्थ का क्या मूल्य ? क्या उनका कोई स्वामित्व नहीं ? पीढ़ी-दर-पीढ़ी तुम्हारी भूख-प्यासों का दसत्व करते चले जाना ही, क्या उनकी एक मात्र नियति है ?'
क्षणैक चुप रह कर भगवान् फिर बोले :
'पूछता हूँ, क्या आधार है तुम्हारे इस अर्जन, अधिकार और स्वामित्व का, कि तुम इस पृथ्वी के एक कण का भी दान करने का दम्भ कर सको ? तुम केवल बर्बर उपभोक्ता हो, और अन्य पदार्थ, प्राणी और मानव मात्र को तुम केवल अपना उपभोग्य मानते हो। शताब्दियों से चली आ रही असंख्य प्राणियों और मानवों की हिंसा और हत्या से निचुड़े रक्त से अजित सम्पत्ति का दान, अनगार अकिंचन अर्हन्त महावीर कैसे स्वीकारे?'
एक गहरा सन्नाटा । और फिर सुनाई पड़ा :
'और सुनो धन-कुबेरो, गहरी आत्म-वेदना के तप से उपलब्ध योग, अध्यात्म, ज्ञान-दर्शन, काव्य, कला, लालित्य और सौन्दर्य का मूल्य, तुम्हारी बर्बर उपभोक्ता व्यवस्था में सब से नीचा आंका जाता है। एक कवि या कलाकार का सर्जन तुम्हारे लिये केवल मनोरंजन है, उसका मूल्य हर ठोस उपभोग्य पदार्थ की तुलना में नगण्य होता है। सूक्ष्म भाव का तुम्हारे यहाँ कोई मूल्य नहीं, केवल स्थूल जड़ ठोस पुद्गल ही तुम्हारे यहाँ मूल्यवान है। ज्ञानियों, तीर्थंकरों, अर्हतों, ऋषियों, भगवानों और उनकी वाणी को भी तुम केवल उपभोग्य वस्तु मानते हो, और उन्हें तुम अपने महादानों से ख़रीद लेना चाहते हो। ताकि वे परित्राता जन्मान्तरों में तुम्हें जरा, मृत्यु, रोगवियोग, शोक के परितापों से बचाते रहें। धर्म तुम्हारे लिये अपने स्वार्थों की सुरक्षा का कवच मात्र है, और उसे भी तुम अपने व्यापारिक पण्यों में ख़रीदते और बेचते हो।
फिर एक विप्लवी सन्नाटा। फिर सुनाई पड़ा :
'श्रेष्ठियो, क्या तुम महावीर को भी आश्रय-आगार दान कर के, उसका धर्म, ज्ञान और भव-त्राण खरीदने नहीं आये ?'
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