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उसका काम्य साम्राज्य अचूक दिला सकते हो? क्या तुम उसे आसन्न संकट और मृत्यु से बचा सकते हो?'
सभी सम्बोधितों ने एक-स्वर में कहा :
'वह हमारी सामर्थ्य में नहीं, त्रिलोकीनाथ। वह सर्वशक्तिमान महावीर ही कर सकते हैं !'
'जीवक कौमारभृत्य, माण्डव्य उपरिचर, क्या तुम अपने इस जरा-जर्जरित राजा को पुनयौं वन प्राप्त करा सकते हो? क्या तुम अपने लोहवेध रसायन से, इसका देहवेध कर सकते हो? क्या तुम इसकी निष्क्रिय हो गई यौवनग्रंथियों और चुल्लक-ग्रंथियों को, संजीवन और पुनर्नवा कर सकते हो ?' ___'वह हमारी सामर्थ्य में नहीं, हे अन्तर्यामिन् । आपके सम्मुख हम मृषा भाषण कैसे कर सकते हैं ?' ___तो आर्य माण्डव्य उपरिचर, तुम्हारे भोगवादी आचार्य वृहस्पति क्या तुम्हारे राजा को पूर्ण भोग उपलब्ध करा कर, पूर्ण परितृप्त कर सकते हैं ?'
'कोई भी आचार्य, वाद या दर्शन वह कैसे कर सकता है, देवार्य । पूर्ण स्वाधीन, निरन्तर चिक्रियाशील अर्हन्त ही ऐसा वज्रवृषभ-नाराच संहनन उपलब्ध करा सकते हैं। वही ऐसा पूर्णकाम भोग दे सकते हैं। अर्हत् का सर्वतंत्र स्वतंत्र पुरुषार्थ ही, उस परम अर्थ को उपलब्ध करा सकता है।'
'तो फिर आर्य माण्डव्य, तुमने जो अभी उस दिन बिल्व-फल में एक मात्रा रसायन कोशलराज को दिया था, उसका क्या प्रयोजन ?'
'क्षमा करें, भन्ते त्रिलोकीनाथ ! सर्वज्ञ भगवन्त से क्या छुपा है ? गान्धारनन्दिनी कलिंग सेना से महाराज ने हाल ही में विवाह किया है। महाराज ने हमारी सहाय चाही, हमने अपना कर्तव्य किया !'
'कि तुम्हारा राजा युवती गान्धारी के सम्भोग में समर्थ हो सके ! यही न? समर्थ हो सका वह ?'
'महाराज स्वयम् आपके सम्मुख हैं, भगवन् । उन्हें हर पल जीने के लिये कोई भ्रम चाहिये। हम नित नया भ्रम महाराज को दे कर, उन्हें जिलाने में निमित्तभूत होते हैं। और इस तरह अपने अस्तित्व का निर्वाह करते हैं।'
'तो मेरे पास भी तुम कोई भ्रम लेने आये हो, कोशलराज?' __ 'भ्रम लेने ही तो आया था, प्रभु। लेकिन मेरे सारे भ्रम टूट रहे हैं, भन्ते भगवान् । मैं अधिक-अधिक निर्धम हो रहा हूँ।'
'गान्धार राजबाला कलिंगसेना ! यह गान्धार से श्रावस्ती तक हठपूर्वक एक दुर्मत्त घोड़े पर सवार हो कर आई है। तुम ऐसा कर सकते हो, राजन् ?
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