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'सुन कोशलेन्द्र, तू अपने में नहीं जी रहा। तू प्रति क्षण श्रेणिक, चण्ड प्रद्योत, उदयन, वीतिभयराज उदायन, पशुपुरी के पार्शवराज, जम्बू द्वीप के तमाम विक्रान्त भूपतियों, योद्धाओं, विजेताओं के आतंक तले जी रहा है। तू राज्य और वाणिज्य के लोभ में जी रहा है। तू सुवर्ण-रत्न, सार्थवाह और उनकी अकूत सम्पदा में जी रहा है। तू सहस्रों अपहरिता, पीड़िता सुन्दरियों के रूप-यौवन की घिघियाहट में जी रहा है। तू लक्ष-लक्ष श्रमिकों के लहू, पसीने, आहों और कराहों में जी रहा है। सत्ता-सम्पदा, कामिनी और कांचन के इस शाखाजाल का अन्त नहीं। फिर तुझे नींद कैसे आये ? सारे ब्रह्माण्ड को भक्षण करने की बुभुक्षा से तू दिवा-रात्रि आर्त्त, रौद्र और आकुल-व्याकुल है। लेकिन उसे भोगने का पौरुष, बल, वीर्य, तेज, सामर्थ्य तुझ में नहीं। ऐसी विषम त्रासदी में जो जी रहा है, वह निश्चित और निश्चिन्त कैसे जी सकता है ?' ___'मेरे चेतन के पट खुल रहे हैं, प्रभु । मेरी आँखें अधिक-अधिक खुल रही हैं। मेरी जड़ीभूत सन्धियाँ और ग्रंथियाँ टूट रही हैं। मैं हलका हो रहा हूँ। मुझे और खोलो, हे परम पिता परमेश्वर। ताकि मैं पूर्ण निर्ग्रन्थ, निर्भार, शान्त हो कर सुख की नींद सो सकूँ।'
'देख, तेरे जीवन-नाटक के सभी प्रमुख पात्र यहाँ उपस्थित हैं। उनका सामना कर, उन्हें साक्षात् कर, उनके छोर तक जा, उनसे पार उतर कर, अपने में लौट आ। तु विश्रब्ध हो जायेगा, और अपने भीतर सुख की नींद सोयेगा।'
'मैं प्रस्तुत हूँ, देवार्य !'
"महामंत्री सीमन्धरायण, महाबलाधिकृत दीर्घकारायण, सेनापति बन्धुल मल्ल, महामात्य श्रीवर्द्ध, राजपुत्र विडूडभ, महाक्षत्रप कौशल्य हिरण्यनाभ, आचार्य माण्डव्य उपरिचर, जीवक कौमारभृत्य, गान्धारी कलिंगसेना, चन्द्रभद्रा शील चन्दना, धन-कुबेर अनाथ पिण्डक और मृगार श्रेष्ठि ! -कोशलेन्द्र प्रसेनजित तुम सब के दर्शन के प्रार्थी हैं।'
एक-एक कर सारे सम्बोधित स्त्री-पुरुष श्रीमण्डप में उपस्थित हुए। श्री भगवान् का त्रिवार वन्दन कर, वे कोशलराज के आमने-सामने हुए।
'महामंत्री सीमन्धरायण, सेनापति दीर्घकारायण, सेनापति बन्धुल मल्ल, महामात्य श्रीवर्द्ध, कौशल्य हिरण्यनाभ, तुम्हारा राजा तुम्हारे परामर्शों का मोहताज है। वह तुम्हारी सीखों और लीकों पर चलता है। तुमने उसे सारे जम्बू द्वीप का एकच्छत्र सम्राट बनाने का आश्वासन दिया है। तुमने उसके साम्राज्य-स्वप्न के मानचित्र बनाये हैं। वह तुम्हारे निर्देशों पर चलता है। क्या तुम उसे परचक्रों के आक्रमण से बचाने में समर्थ हो? क्या तुम उसे
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