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भी,होम-कुण्डों के हुताशन चण्ड से चण्डतर हो कर धधकने लगे। होमाग्नियां आकाश चूमने लगीं। यह कौन अलक्ष्य याजक आहुति दे रहा है ?
देख कर, समस्त ब्राह्मण-मण्डल किसी अपार्थिव भय से थर्रा उठा । अध्वर्युश्रेष्ठ अग्निभूति गौतम और वायुभूति गौतम चिन्तामग्न हो गये। उन्हें हठात् लगा कि परम अग्नि अंगिरा कोपायमान हुए हैं । तत्काल उपाय न किया गया, तो वे समस्त लोक का भक्षण कर जायेंगे। वही सर्जक ब्रह्मा हैं, वही संहारक महेश्वर भी हैं। अनादिकालीन धर्म का अपलाप हुआ है। हम प्रलय के किनारे खड़े हैं।
अग्निभूति गौतम उद्विग्न हो आये । वे गर्जन कर उठे :
'आर्यावर्त का समस्त ब्राह्मण-मंडल सुने। वेद के इतिहास में संकट की यह घड़ी अपूर्व है । श्रमण ने राहु की तरह ब्रह्म और ब्राह्मण का खग्रास कर लिया है। आदि अग्नि अंगिरा प्रलयंकर हो उठे हैं । कभी भी वे अपने ही सर्जे विश्व का ग्रास कर सकते हैं । तत्काल प्रतिकार करना होगा। कौन है यह महावीर, जिसने निखिल को उच्चाटित कर दिया है। ब्राह्मणो, सावधान !'
वायुभूति गौतम स्वभाव से ही गम्भीर हैं । इस समय उनमें उद्वेग से अधिक एक तीव्र जिज्ञासा है । वे बोले :
'आर्य अग्निभूति, क्या यह सच है कि ब्राह्मण-शिरोमणि इन्द्रभूति गौतम महावीर के शरणागत और शिष्य हो गये ? सर्वज्ञ वर्द्धमान ने उन्हें अपना गणधर बना लिया ?'
'अनुज वायु, ऐसी बात का उच्चारण ही वेद-हत्या का अपराध है। यह मिथ्या प्रवाद है। यह ब्रह्म-द्रोहियों का षड्यंत्र है।'
'किन्नु हे आर्यश्रेष्ठ, अग्रज देवपाद इन्द्रभूति गौतम जो महावीर को पराजित करने गये, तो फिर लौट कर नहीं आये । इसका क्या रहस्य है ?'
अग्निभूति खामोश प्रश्न चिन्ह-से थमे रहे गये। फिर आर्त रोष के स्वर में
बोले :
___ 'निश्चय ही श्रमण पराजित हुआ है। इसी से उसके चरों ने प्रभु को पाँच सौ शिष्यों सहित कारागार में डाल दिया है । मैं जानता हूँ, सूर्य-चन्द्र टल जायें, धुरियाँ हिल जायें, पर ब्रह्मपुरुष इन्द्रभूति गौतम को लोक की कोई शक्ति पराजित
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