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गूंजती जयकारें विकल-पागल होकर अन्तरिक्षों में भटक रही हैं । गन्धकुटी की कटनियों और सीढ़ियों में इन्द्र-इन्द्राणियाँ, देव-देवांगनाएँ साँस रोक कर उद्ग्रीव बैठे हैं । सर्वार्थसिद्धियों के पार ताक रहे हैं । कहाँ हैं प्रभु, कहाँ हैं वे सर्वसत्ताधीश्वर? कहाँ हैं वे सर्ववल्लभ भगवान, जिनके वियोग में सृष्टि शून्य हो कर ताक रही है। ___एक विराट् प्रतीक्षा एकाग्र, एकायन हो कर निःसीम के पटल बींध रही है।
सब कुछ उसमें तिरोधान पा गया है।
कमलासन की कोरों पर विह्वल - आवाहन के हुताशन उठ रहे हैं । संत्रस्त संसार का गहन आर्तनाद शून्य के मण्डलों में मँडला रहा है।
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