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है। इस विधि से रंग, भाव, सौन्दर्य की इस तरल धारा को एक ठोसकाँक्रीट किनारा मिल जाता है, स्थूल मानवीय आधार और सम्वेदन प्राप्त हो जाता है। योगी ऋषम वहाँ एक अनवरत दृष्टा, ज्ञाता, मावक भोक्ता, और साक्षी के रूप में उपस्थित हैं। वे एक अविरल और ज्वलन्त अनुभूति के साथ, माव-रस-सम्वेदन के आप्लावन में ऊमचूम होते हुए, इस विराट सौन्दर्य का साक्षात्कार इस तरह कर रहे हैं, जैसे एक के बाद एक पर्दे उठते जाते हैं, और मण्डल-प्रतिमण्डल नव-नव्यमान रचना खुलती जाती है, होती जाती है। तो वहाँ भावक और भाव्य की संयुक्ति इतनी सघन, मनोवैज्ञानिक और संवेगात्मक है, सृजनात्मक है, कि वह वर्णन न लग कर, एक विचित्र दिव्य सृष्टि का साक्षात्कार लगता है। वहाँ के रंग, रूप, नाम, आकार, क्रियाएँ सब भावित और गतिमान हैं।
फिर याद दिलाऊँ कि इस अध्याय को मैंने जान-बूझ कर, तीर्थंकर के समवसरण के परम्परागत भव्य 'मोटिफ' को एक अभिनव कला-देह प्रदान करने के उद्देश्य ही, इतने विस्तार में रचा है। तमाम उपलब्ध मिथकीय और प्रतीकात्मक सामग्री का मैंने इस में निःशेष उपयोग किया है। पदार्थों, भवनों, लोकों, नदी-समुद्र-पर्वतों, बावलियों, रंगशालाओं, नृत्य-संगीतों, देवदेवियों के जो अपार विचित्र नाम जैन लोक-शास्त्र में उपलब्ध हैं, उन सबके भावाशयों और संकेतों को भी मैंने रचनात्मक प्रासंगिकता के साथ नव-नव्य जीवन-सन्दर्भो में उद्घाटित और आलोकित किया है। मुझे नहीं पता कि मेरे भावक किस हद तक मेरे इस प्रयोग का रसास्वादन कर सकेंगे, या इसमें तन्मय हो सकेंगे। अन्ततः मैं इसे एक जोखिम भरा और नया सृजन-प्रयोग ही मान कर सन्तुष्ट हूँ।
लेकिन यह ज्ञातव्य है, कि इस प्रकार के प्रयोग पश्चिम के अत्याधुनिक साहित्य में बहुतायात से पाये जाते हैं। प्राचीन मिथकीय 'मोटिफ़' का, कथा, कविता, चित्रकला और संगीत तक में अभिनव रूपतंत्र के माध्यम से पुनरसृजन उनके यहाँ एक विशिष्ट कलात्मक उपलब्धि माना जाता है। अंग्रेजी में आधुनिक उपन्यास-कला के अग्रदूत जेम्म ज्वायस ने, अपने विलक्षण उपन्यास 'यलिसिस' में, ग्रीक मिथक-पुरुष यूलिसिस के प्रतीकात्मक माध्यम से आधुनिक मानव-चेतना की कथा कही है। ठीक अभी हाल में अमरीका के 'केलीफोर्निया विज़नरीज़ के नाम से अभिहित चित्रकार, प्राचीन मिस्री और तिब्बती मोटिफ़ों का अपनी कला में पुनरसृजन करते दिखायी पड़ते हैं।
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