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________________ ३४३ प्रतिस्पर्धा की आकूलता नहीं रही। तो सम्पत्ति अपार हो कर सब ओर से आ रही है, ओर सब में इकसार व्याप रही है। · इस निष्काम कर्म में श्रेष्ठि एक अद्भत् चैतन्य, ऊर्जा और आनन्द का अनुभव करते हैं । व्यापार के सारे उद्यमों और उपकरणों में वे एक निर्विकल्प तन्मयता महसूस करते हैं। तौल का काँटा अपनी जगह तुल रहा है, बाट अपना काम कर रहे हैं, माप अपनी जगह पर है, और श्रेष्ठि स्वयं आप अपनी जगह पर हैं । काँटे पर उनकी निगाह स्थिर है, और सारे तौल-माप चुपचाप अपने आप ठीक-ठाक हो रहे हैं। · · ·और प्रायः ऐसा होता है, कि श्रेष्ठि कई दिन गद्दी पर दिखायी नहीं पड़ते। किसी को पता नहीं होता कि कहाँ गये हैं। सेठानी शिवानन्दा को भी नहीं । पनघट और नदोघाट की स्त्रियों ने उन्हें सामने से जाते देखा है। और वे तन-बदन और वसन की सुध भूली देखती रह गयी हैं । श्मशान में आधी रात एकस्थ दीखे हैं । झाड़खण्डों के निचाट में दूर-दूर जाते दीखे हैं। • . और फिर अचानक शिवानन्दा के कक्ष में आ रमते हैं। तो दिनों वे बाहर नहीं आते। असूर्यपश्या के आलिंगन-सुख को उनसे अधिक कौन जानेगा ! शिवानन्दा उस पुरुष के रूप को सम्मुख पा कर अपलक देखती रह जाती है। भृकुटी में गुंथी दोनों आँखों की इस मर्मीली चितवन से तो कामदेव भी घायल हो जाता है। तो शिवानन्दा का क्या वश है, कि उस आरपार बींधते कटाक्ष से विव्हल और विवसन न हो जाये। श्रेष्ठि शिवा के रूप को अनिमेष पहरों देखते रह जाते हैं । और शिवा उस एकाग्र तन्मय दृष्टि से अधिक-अधिक सुन्दर और दिगम्बर होती हुई, अपने में लीन और बेसुध हो रहती है। • • वह जब अंगड़ाई लेती हुई उस आश्लेष-सुख से बाहर आती है, तो श्रेष्ठि के मुख से अस्फुट सम्बोधन फूटता है: 'शिवानी!' 'मेरे शिव !' और सारे कक्ष में प्रतिध्वनित होता है : शिवोऽहम् - 'शिवोऽहम् - 'शिवोऽहम् . . . ! इस बीच भगवान अचानक लोकालय से अन्तर्धान हो गये थे। जन की आंखों से ओझल, ऐसे निर्जनों में विहार कर रहे थे, जहाँ मानुष का संचार नहीं। - पहाड़, जंगल, नदी, जलचर, थलचर, नभचर, खेचर उन्हें अपने बीच एकाकी पा रोमांचित हो आये । चुप, निस्पन्द हो उन भगवान को सुनते रह गये : Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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