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'प्रभु ने मेरी ओर देखा, मुझे पहचाना और अपनाया । मैं कृतकृत्य हुआ, मैं आश्वस्त हुआ, स्वामिन् ।'
'तू उबुद्ध हुआ, तू उत्तिष्ठ हुआ, आत्मन् ।...' 'ऐहिक सुख से ऊब गया हूं, भगवन् । उससे ग्लान और क्लान्त हो गया हूँ । आकुल हूं किसी ऐसे सुख के लिये, जिसकी धारा टे नहीं।' . 'जहां आसक्ति है, आसंग है, वहां ऊब है ही। निःसंग रह कर ही हर व्यक्ति
और वस्तु में पूर्ण उत्संगित हुआ जा सकता है। व्यक्ति और वस्तु तो स्वभाव से ही प्रतिपल नयी हो रही है। लेकिन व्यक्तियों और वस्तुओं के बीच जो रागात्मक सम्बन्ध और उलझाव है, उससे आवरण पड़ते हैं। हमारे बीच सीमाएँ, बाधाएँ खड़ी होती हैं। हम परस्पर को पारदर्श नहीं हो पाते । इसी से एक-दूसरे के नित नाविन्य, सौन्दर्य और ताजगी का सुख नहीं भोग पाते । सीमा तो उबायेगी ही। क्यों कि उसमें दुहराव होता है । असीमा में ही अपार इकसार सुख सम्भव है।'
'हृष्ट-तुष्ट हुआ, भगवन्, उद्बोधित हुआ, स्वामिन् । आनन्द श्रावक अर्हन्त को अविराम श्रवण करना चाहता है। ग्रहण करना चाहता है, पाना चाहता है।'
'जानो आनन्द, वस्तुओं और व्यक्तियों के बीच का स्वाभाविक सम्बन्ध ज्ञानात्मक है । ज्ञानात्मक सम्बन्ध में ही हम एक-दूसरे को पारदर्श हो कर, पूर्णता में भोग सकते हैं। उसी में नितनव रमणीय, और नव-नव्य उन्मेषी सुख सम्भव है। क्यों कि उसमें अखण्ड सौन्दर्य का चेहरा सामने आता है। सौन्दर्य ही तो नव्यता-बोध है।
_ 'जानते हो आनन्द, वह सौन्दर्य क्या है, कहाँ है ? वह समय में है । समय वह आत्मा है, जो कालगत भी है और कालातीत भी है, उसी एक क्षण में। 'सम्' अर्थात् एक साथ । 'अय्' अर्थात् गति भी और ज्ञान भी, एक साथ । वह आत्मा एक साथ गति भी करती है, और ज्ञान भी करती है। वह स्थिति और गति एक साथ है । वह एक हो मुहूर्त में परिणमन भी करती है, और जानती भी है। वह सतत अखण्ड काल में जीवन को जोती भी है, भोगती भी है, जानती भी है । और फिर भी उससे परे ध्रुव अचल रह कर, इस सब का ज्ञान भी करती है।
'केवल परिणमन, केवल जीवन उसका आधा ही पक्ष है। उसी में सीमित रहना, अज्ञान में रह कर अन्ध चक्रावर्तन करना है । लेकिन ज्ञान पूर्वक जीना, हर पल मुक्त होना है। इसी से ज्ञानी भोगते हुए भी आत्मयुक्त रहता है, मुक्त रहता है। भोग से उसे कर्म-बन्ध नहीं होता, उलटे कर्म का क्षरण होता है ।
'ज्ञानी प्रति पल संचेतना और ज्ञान में जीता है, इसी से वह अविरल सौन्दर्य का भोग करता है । वह सौन्दर्य आत्मा के एकत्व और अनन्यत्व में है । हर
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