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उभरने लगी, जैसे आधी रात समुद्र के किसी दूरवर्ती प्रदेश में अचानक कोई जन्ती अवतीर्ण हो जाये, और अपने असंख्य दीपालोकित कक्षों के रंग-बिरंगे आलोक से तमाम चराचर लोक को चकित कर दे ।
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महासत्ता के इच्छा करने मात्र से यह विराट् निर्माण सहसा ही आविर्मान झे उठा है। सारे शिल्प, कला, बिद्या, कल्पना, कविता, वास्तु, स्थापत्य, सारे निर्माण यहाँ स्थगित हैं। क्योंकि सारे सृजनों के मूल स्रोत स्वयं यहाँ सीधे प्रकट हो कर, अपनी अभिव्यक्ति का चूड़ान्त स्पर्श कर रहे हैं । सारे ऋषि, कवि, कलाकार, दृष्टा, ज्ञानी, योगी, यहाँ अपनी कारयित्री प्रतिभा के छोर पर कर स्तम्भित हैं ।
माहेश्वरी, सरस्वती और लक्ष्मी यहाँ अपने चरम सौन्दर्य को अनाबरित कर निवेदित हैं। नाना गुणों, शक्तियों, विभूतियों की सारी ही देवियाँ यहाँ avने वैभव और लावण्य के वसन उतारती हुईं जैसे नग्न ज्योतियों की तरह मण्डलाकार नृत्य कर रही हैं । और महा अवकाश में सृजन के ज्वार तरल रत्न - राशियों की तरह हिलोरे ले रहे हैं ।
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• योगी ऋषभ अपने हर्ष को हिये में समा नहीं पा रहे हैं । कब जाना था कि इसी जीवन में वे सत्ता के मूल स्रोतों तक पहुँच जायेंगे । वे उन्हें आँखों जाने कूटते और बहते देखेंगे । उनके निर्झरों की मौलिक विद्युत्-तंरगों में नहायेंगे, डूबे-उतरायेंगे । पर शुक्लध्यान की लक्ष्मी उन्हें अपने वक्ष पर खींच रही है । यहाँ क्या अशक्य है ? इस महा सम्भवा भूमि के तट पर सारे असम्भवों की कतारें ढह गयी हैं । सारी निराशाओं, विफलताओं के काले मस्तूल यहाँ अचानक सिरा गये हैं ।
और ऋषभसेन मुनि एक मूलगामी धक्के के साथ, उस प्राचीर के महागोपुरम् में प्रवेश कर गए। जिसके परिमाण आकार-प्रकार और माप से परे बेशुमार होते जा रहे हैं । जो किसी ज्यामिति, ज्योतिर्विद्या या लोक-विज्ञान की परिगणना में नहीं आते । और एक पर एक ऊपर जाती हुई अनेक प्राकारों की सरणियाँ आँखों के पार चली गयी हैं । नव रत्न, सात तत्त्व, नव पदार्थ के सारांशिक तत्त्व में से यह पूरी रचना अनुपल नव-नवीन रूपों, आकारों, रंगों में आकृत होती लग रही है। सारे प्राकारों पर अष्ट मंगल द्रव्यों की पंक्तियाँ कई रंगों की तरंगित नदियों सी लगती हैं ।
रूप, रस, गन्ध, वर्ण, स्पर्श मानो यहाँ, स्थूल पदार्थों के आश्रित न रह कर, सुनग्न तन्मात्राएँ मात्रा रह गये हैं । उन्हीं में से पहले नाना रंगी सूक्ष्म रत्न फूटते हैं । फिर वही रत्न पदार्थों में परिणत होते हैं । ... • पर वह क्रमिक प्रक्रिया भी यहाँ ममाप्त है । असंख्य रत्न और असंख्य पदार्थ- द्रव्य यहाँ तरल
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