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________________ ३१४ में सहसा ही अवतरित हुए। उनमें से उतर कर सूर्य और चन्द्रमा ने ब्रह्माण्डपति भगवान की परिक्रमा की। उनका वन्दन किया। समस्त प्रजाजन कौतूहल से स्तब्ध देखते रह गये। दिन-मान का अनुमान शक्य न रहा। दिन और रात के स्रष्टा, स्वयम् यहाँ सदेह उपस्थित थे। प्रभुपाद गौतम ने सबकी ओर से जिज्ञासा की: 'जो कभी न हुआ, वह आँखों आगे प्रत्यक्ष है, प्रभु ? समय थम गया, पहर थम गये, बेलायें ठहर गयीं। दिन और रात का भेद मिट गया। गतियां रुक गईं। ऐसा भी हो सकता है, प्रभु ?' 'जो समक्ष है, उस पर सन्देह करोगे, गौतम ?' 'स्वयम् सूर्य और चन्द्रमा अपनी धुरियों से उतर कर प्रभु के वन्दन को आये। दुनिया रुक गई, प्रभु !' ___ 'वह अपने में आ गई। सब अपने में स्तब्ध हो गया, गौतम। यही स्थिति है, और सूर्य-चन्द्र का अविराम परिभ्रमण ही गति है, प्रगति है। यहाँ इस क्षण, स्थिति, गति, प्रगति संयुक्त उपस्थित और सक्रिय है, गौतम। अर्हत् का त्रिकाली ज्ञान यहाँ सदेह प्रमाणित है, गौतम । शाश्वती में यहाँ प्रत्यक्ष जियो, गौतम !' और सारी धर्म-पर्षदा इस ज्ञान के आलोक में अमरत्व का अनुभव करने लगी। शाश्वती में जीने लगी। .. इस बीच महायोगिनी चन्दन बाला, अपने स्व-समय में संचेतन हो आईं। वे ठीक समय पर नियमानुसार अपने साध्वी-संघ के साथ प्रभु का वन्दन कर, स्व-स्थान को चली गईं। आर्या मृगावती अपनी ध्रुव स्थिति से बाहर न आ सकी। त्रिलोक-सूर्य सामने प्रकाशित था। उनके लिये रात न हो सकी। उन्हें आर्याराम में लौटने का भान ही न रहा। . . • मृगावती जब अपनी समाधि से जागी, तो पाया कि सूर्य-चन्द्र जा चुके थे। भगवान जा चुके थे । पर्षदा समापित हो चुकी थी। रात हो चुकी थी। समय का अतिक्रमण हो गया जान कर, मृगावती असमंजस में पड़ गईं। वे त्वरापूर्वक उपाश्रय में लौटीं। महाप्रवत्तिनी देवी चन्दना ने किंचित् शासन के स्वर में कहा : 'आर्या मृगावती ही अनुशासन का अपलाप करेंगी, तो साध्वी-संघ की मर्यादा कितने दिन टिकेगी?' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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